ये कैसा कुम्भ!

0
166

न कोई प्रभारी मंत्री, न संचालन समिति
हरिद्वार। हरिद्वार कुम्भ शुरू होने के पहले से ही व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे। जिस कारण पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व प्रभारी मंत्री मदन कौशिक तक कि कुर्सी छीन गयी। मेलाधिकारी के साथ कमीश्नर को कुंभ के कार्यों की देखरेख के लिए नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने तैनात कर सख्ताई का संदेश दिया और कुम्भ कार्यों ने गति पकड़ी। उसके बावजूद भी बैरागियों की चिंता नही की गई। जिसका नतीजा ये रहा कि अपर मेलाधिकारी हरवीर सिंह संतों के गुस्से का शिकार हो गए जो कुम्भ के किसी काले अध्याय से कम नही है? हरवीर सिंह मेला प्रशासन में अकेले संकट मोचन हैं जो सरकार से लेकर मेला अधिकारी के कई मुश्किल राहों को सही करते आये हैं?
दरसल उत्तराखंड बनने के बाद यह दूसरा कुम्भ हो रहा है इससे पहले 2010 और 2016 का अर्द्धकुम्भ दोनों देखे उत्तराखण्ड ने और हरिद्वार वालों ने तो कई कुम्भ व अर्द्ध कुम्भ देखे लेकिन यह पहला कुंभ है जिसे कराने की मंशा सरकार व मेला प्रशासन कभी दिखी ही नही? इसी अधूरी व्यवस्थाओं की भेंट मुख्यमंत्री की कुर्सी चढ़ गई ऐसी चर्चाएं राज्य के गलियारों में आम हैं तब भी व्यवस्थाओं को पूर्ण रूप देने वाला मेला प्रशासन अपनी चाल नही बदल पाया? सवाल उठ रहे हैं कि जो गलती त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा की गई। वही गलती तीरथ सिंह रावत भी दोहरा रहे हैं? प्रत्येक कुम्भ व अर्द्धकुम्भ में मेला प्रशासन के साथ-साथ सरकारें अपने कार्यकर्ताओं को एक कमेटी बना कर निगरानी के लिए समाहित करता है। मेले के लिए एक प्रभारी मंत्री भी बनता है, मेला कमेटी का अध्यक्ष मुख्यमंत्री तो उपाध्यक्ष या चेयरमेन कोई कार्यकर्ता होता तथा उसके साथ 5/7 सदस्य टीम होती है। इस बार ऐसा कुछ नही हुआ त्रिवेंद्र सरकार में सबसे भारी मंत्री व हरिद्वार विधायक ही सर्वेसर्वा बने रहे। अब मुख्यमंत्री बदलने के बाद नए नगर विकास मंत्री बंशीधर भगत ने हरिद्वार से सरकार में राज्य मंत्री स्वतन्त्र प्रभार यतीश्वरानंद व भाजपा के जिला अध्यक्ष को निगरानी करने को कहा जरूर है परन्तु ये अधिकृत विषय नही है? मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत जिस उत्साह के साथ कुम्भ की सफलता को अपने प्रथम अध्याय में लिखना चाहते थे उनकी गति को भी कोरोना ने जकड़ लिया लेकिन वर्चुल माध्यम में सरकार चला रहे तीरथ सिंह रावत को स्थानीय कार्यकर्ता, व्यापारी, तीर्थपुरोहित समाज व सन्त समाज से संपर्क कर और बेहतर सुविधाओं पर चर्चा करनी चाहिए? मेला प्रशासन के ऊपर एक कमिश्नर को मेले तक हरिद्वार में ही कैम्प करने के आदेश का सभी ने स्वागत किया लेकिन उसके बाद भी बढ़ते कोरोना से माहौल रुक गया है। बात यह है कि हम सम्पूर्ण व्यवस्थाएं समय पर नही कर पाए इसलिए भीड़ की आमद को झेलने की क्षमता नही है। ये सब इसी लिए हुआ कि सरकार ने अधिकारियों पर निगरानी के लिए कोई पार्टीगत व्यवस्था नही की। 2010 में निशंक सरकार ने तो पूरा मेला प्राधिकरण ही बना दिया था। जिसका उपाध्यक्ष पार्टी नेता को बनाया गया था। उसी प्रकार हरीश रावत ने अर्द्धकुम्भ में सात सदस्यी मेला कमेटी बनाने के साथ साथ अपना एक कार्यकर्ता को कुम्भ सलाहकार नियुक्त कर दिया था। हरिद्वार उत्तर प्रदेश का हिस्सा होते हुए भी कुंभ कार्यों की निगरानी के लिए विभिन्न सरकारें अपने कार्यकर्ताओं को मेला कमेटी का हिस्सा बनाती आयी है। यह पहला मौका है जब पार्टी के किसी कोई कार्यकर्ता का सहयोग सरकार ने नही लेना चाह। इसी के कारण मेला प्रशासन अपने स्वतंत्र निर्णयों से मेला कार्यों को सम्पन्न कराने में लगा है जिस कारण स्थानीय निवासियों व प्रशासन में कोई तालमेल नही है? मेला संचालन समिति या कहे पार्टी के ये ही कार्यकर्ता मेला प्रशासन व स्थानीय निवासियों व संस्थाओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करते थे। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को अभी बाकी बचे मेले पर ये कार्य करतें है तो पार्टी को ही इसका लाभ मिलेगा जो दिल्ली तक वाहवाही का ढोल भी बजाते हैं। सोशल मीडिया पर भी खूब किरकिरी सरकार की ये ही हो रही है कि तैयारी पूरी नही इसीलिए जनता को हरिद्वार आने से रोक दिया जा रहा है? बुजुर्गों का आरोप है ऐसा विचित्र मेला पहली बार दिखा, ऐसा मेला प्रशासन पहली बार दिखा जो अनुभवी स्थानीय निवासियों तक के अनुभवों पर चर्चा नही कर रहा, ऐसा मेला पहली बार दिखा जब मेले के दिन बाजारों को बंद करने की बात कही जा रही है?
वैरागियों के निर्मोही अखाड़े के संत कई दिनों से मेला अधिकारी के चक्कर लगा रहे थे,पहले भूमि आवंटन में बहुत बड़ी देरी की गई फिर व्यवस्थाओं पर कोई फोकस नही किया जा रहा था। कल शाम भी अंधेरे में डूबे वैरागी कैम्प में त्वरित वैकल्पिक व्यवस्था के लिए निर्मोही अखाड़े के महंत राजेन्द्र दास सैक्टर अपर मेलाधिकारी मनीष सिंह व प्रत्युष सिंह से वार्ता कर रहे थे लेकिन अधिकारियों के अनुभवहीनता व उचित उत्तर न मिलने के कारण माहौल गर्म हुआ जिसे संभालने ही संकटमोचन अपर मेलाधिकारी हरवीर सिंह गए थे जो खराब माहौल का शिकार हो गए? असल मे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत,पूर्व नगर विकास मंत्री मदन कौशिक की कभी गंभीरता ही मेले को लेकर नही दिखी? त्रिवेंद्र की चुप्पी,मदन कौशिक की टालमटोल व मेला प्रशासन को लेकर सन्तों में इतना गुस्सा भरा हुआ है कि उसी का परिणाम ये घटनाक्रम रहा? ऐसा ही गुस्सा स्थानीय संस्थाओं,व्यापारियों व पुरोहितों में हैं और इन सबको मैनेज करने वाला कोई स्थानीय व्यक्ति या संस्था नही बनाई गयी है? आशंका ये भी जताई जा रही है कि अभी ये शुरुआत है कही मुख्य स्नान पर्वों पर ये मामले विस्तार न लें ले। अभी युद्ध स्तर पर कुम्भ की तैयारियों को कराना तीरथ सिंह रावत के लिए चुनौती बन गया है? वैरागी हाल ही में मथुरा के कुम्भ से लौटे है जहां योगी सरकार की व्यवस्थाओं से वे बहुत उत्साहित है लेकिन हरिद्वार कुम्भ में उनको धरातल पर जो मिला नाकाफी है जिसे सही करना ही होगा। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को बड़े फैसले करने होंगे नही तो पहली परीक्षा में ही त्रिवेंद्र जैसा तमका चिपक जाएगा?

LEAVE A REPLY