भाजपा के लिए साख का सवाल तो कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नही
प्रमुख संवाददाता
देहरादून/सल्ट। उत्तराखण्ड के नवनियुक्त मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष के लिए सल्ट का उपचुनाव उनकी अग्निपरीक्षा माना जा रहा है और जिस तरह से मुख्यमंत्री ने उपचुनाव जीतने के लिए समुची ताकत उपचुनाव में झोंक दी है उससे अब यह सवाल खडा हो रहा है कि मुख्यमंत्री अपने प्रत्याशी को किस तरह से बडी जीत का सेहरा उनके सिर पर सजायेंगे। मुख्यमंत्री के लिए उपचुनाव एक अग्निपरीक्षा है तो उन्हें पार्टी के कुछ भीतरघातियों पर भी पैनी नजर रखनी पडेगी जो इस बात के लिए आज भी परेशान हैं कि तीरथ सिंह रावत को आखिर किस पैमाने के आधार पर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी गई?
राज्य के सियासी पारे में तीरथ सिंह रावत तो तप कर आ गये लेकिन सल्ट चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा के लिए साख का सवाल जैसा ही है। पूर्व में हुए उपचुनावों की तरह इस बार सहानुभूति कार्ड खेला है, लेकिन इसके लिए भी खूब पसीना बहाना पड सकता है। सल्ट सीट पर तीरथ रावत व मदन कौशिक के संगठन में तालमेल की परीक्षा है,तो 2022 के चुनावों की रिहर्सल भी है। 2014 व 2019 से अब तक भाजपा विजय रही है। पाचो लोकसभा सीटो पर फतह हासिल कर तो 2017 में विधानसभा चुनाव में 70 मे से 57 सीटें प्रचंड बहुमत से जीतकर विरोधी खेमे की कमर ही तोड़ दी थी। पिथौरागढ़ व थराली विधानसभा में हुए उपचुनावों में पार्टी ने प्रकाश पंत व मगनलाल शाह की पत्नियों को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड खेला तो सल्ट सीट पर दिवंगत सुरेन्द्र सिंह जीना के भाई को उम्मीदवार बनाया गया है। लेकिन इस बार पार्टी के सामने चुनौतियां अधिक है। सरकार व पार्टी संगठन में हुए बदलावों के कारण तीरथ सिंह रावत व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के लिए यह उप चुनाव परीक्षा से कम नहीं है। वही कांग्रेस खेमें की बात की जाए तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश संगठन को दिन में ही तारे दिखा दिए हैं, अपने उम्मीदवार गंगा पंचोली को टिकट दिलाकर अपने ही पार्टी विरोधियों को पटक दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2022 में भी हरदा की तूती बोलेगी?
चुनावी साल में सल्ट का उप चुनाव 2022 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। भाजपा ने अपने मंत्री से लेकर संगठन पदाधिकारियों को भी मोर्चे पर खड़ा कर दिया लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस को अपने सेनापति यानी पूर्व सीएम हरीश रावत की कमी जरूर खलेगी। खास सियासी अंदाज और भाषणों के जरिये विरोधियों को घेरने वाले हरदा कोरोना की चपेट में आने की वजह से फिलहाल दिल्ली में उपचार करा रहे हैं जबकि 17 अप्रैल को सल्ट में मतदान होना है। ऐसे में संभावना है कि वह अंतिम दौर में ही सल्ट आ सकेंगे। ऐसे में कांग्रेस के अन्य क्षत्रपों को इस चुनाव में जी-जान से जुटना होगा। इस चुनाव में कांग्रेस जीत नहीं पाती है तो किसी के सिर पर हार का टिकरा नहीं फूटने वाला है। लेकिन 2022के चुनावों में भाजपा के लिए अवश्य ही गले की फांस बन सकती है।