एक ही पद पर आखिर कब तक जमे रहेंगे अधिकारी?
कोई पॉवरफुल तो कोई खाली बैठा महकमें में!
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य का गठन होने के बाद जब प्रदेश की कमान दिवंगत नित्यानंद स्वामी के हाथों में आई तो कुछ अर्से बाद ही उनकी कुर्सी चली गई और उसके बाद उन्होंने मीडिया के सामने अपना दर्द साझा किया था कि अगर वह सूचना महकमें के कुछ अफसरों के झांसे में न फंसते तो आज उन्हें मुख्यमंत्री पद से नहीं हटना पडता। पूर्व सीएम के यह बोल आज भी राज्य के गलियारांे में हमेशा चर्चा का विषय बनते रहते हैं। हैरानी वाली बात तो यह है कि राज्य के सूचना महकमें के कुछ अफसरों के चलते ही राज्य के नौ मुख्यमंत्रियों को हार का सामना झेलना पडा और उन्हें मुख्यमंत्री पद भी गवाना पडा था। एक मात्र पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने अपने कार्यकाल में सूचना महकमें का जिम्मा इन्दिरा हृदयेश को सौंपा था लेकिन उनके कार्यकाल में भी सूचना महकमें में कुछ अफसरों का एक छत्र राज रहा और इसी के चलते उन्हें विधानसभा चुनाव में हार का सामना भी करना पडा था। अब राज्य में नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी हुई है और सूचना महकमा भी उन्हीें के पास है और विधानसभा चुनाव होने में मात्र कुछ ही समय बचा है ऐसे में अगर मुख्यमंत्री ने सूचना महकमें में एक ही पद पर डटे कुछ अफसरों को रिशफलिंग करने के लिए अपनी इच्छाशक्ति न दिखाई तो उन्हें सूचना विभाग के कुछ अफसरों की तानाशाही का खामियाजा चुनाव में बडे पैमाने पर सहना पड सकता है? हैरानी वाली बात तो यह है कि सूचना महकमें में तो कोई अफसर तो इतना पॉवरफुल हो रखा है कि उसके पास काम का एक बडा जिम्मा मिला हुआ है और कोई अफस्र ऐसा है जो महकमें में अन्दर खाली बैठा हुआ है? अगर सूचना विभाग में भाई-भतीजावाद को खत्म करने की दिशा में नये मुख्यमंत्री ने कोई बडा कदम न उठाया तो इसका परिणाम विधानसभा चुनाव में नये मुख्यमंत्री के लिए 440 वोल्ट के करंट की तरह झेलना पड सकता है? सवाल है कि आखिर उत्तराखण्ड के सबसे महत्वपूर्ण सूचना महकमें में पारदर्शिता लाने व अदृश्य चल रहे भ्रष्टाचार को परखने के लिए नये मुख्यमंत्री आखिर किस विजन के तहत काम करेंगे इस पर अब सबकी नजरें लग गई हैं?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड में जब भी किसी राजनेता को मुख्यमंत्री की कमान मिली तो उन्होंने सूचना महकमें को अपने पास रखा। सबसे प्रथम मुख्यमंत्री दिवंगत नित्यानंद स्वामी के कार्यकाल में सूचना महकमें के कुछ अफसरों के गैर जिम्मेदाराना फैसलों ने उनकी कुर्सी तक हिलवा दी थी और मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद खुद नित्यानंद स्वामी ने मीडिया के सामने खुलासा किया था कि उन्हें सूचना विभाग के कुछ अफसरों ने डूबा कर रख दिया। इसके बाद भगत सिंह कोश्यारी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया और उनके पास भी सूचना महकमा था उस दौरान भी सूचना के चंद अफसरों ने ऐसे कृत्य किये कि राज्य से भाजपा सरकार ही साफ हो गई थी। इसके बाद स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने सूचना महकमा अपनी मंत्री इन्दिरा हृदेयश को सौंपा था उस दौरान भी सूचना महकमें के कुछ अफसरों ने जिस तरह से सरकार को आईना दिखाने वाले मीडियाकर्मियों पर शिकंजा कसा था उसी का परिणाम रहा कि अगले विधानसभा चुनाव में सूचना मंत्री खुद चुनाव हार गई थी। कांग्रेस के बाद राज्य में भाजपा की सत्ता आई तो भुवन चन्द्र खण्डूरी को मुख्यमंत्री की कमान मिली और उनके पास भी सूचना महकमा था उस कार्यकाल में भी सूचना के चंद अफसरों ने पर्दे के पीछे रहकर जिस तरह से भाई-भतीजावाद के तहत विज्ञापनों की बंदरबांट की और कमीशन का खेल विज्ञापनों व फिल्मों में खेला तो एकाएक खण्डूरी का भी तख्तापलट हुआ और रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान किया गया उस दौरान भी मुख्यमंत्री सूचना महकमा अपने पास रखा और उनके शासनकाल में जिस मीडियाकर्मी ने भी सरकार को आईना दिखाने की कोशिश की उसे सूचना विभाग के कुछ अफसरों ने नेस्तानबूत करने की दिशा में साजिशों का खेल खेला और ऐसे समाचार पत्रों के विज्ञापनों पर प्रहार किया गया जो सरकार के शासनकाल में गलत कार्यों को बेनकाब करने के लिए आगे आ रहे थे। इसी बीच फिर राज्य में निशंक की सत्ता पलट गई और भुवनचन्द्र खण्डूरी को फिर मुख्यमंत्री बनाया गया और उस दौरान भी सूचना के कुछ अफसरों ने मीडिया को लेकर जो तानाबाना बुना उसी का परिणाम रहा कि विधानसभा चुनाव में खण्डूरी को हार का सामना करना पडा था। भाजपा को चुनावी रणभूमि में हराकर कांग्रेस सत्ता में आई तो विजय बहुगुणा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने भी सूचना महकमा अपने पास रखा और उस कार्यकाल में भी सूचना के कुछ अफसर सरकार को गुमराह करने का खूब खेल खेलते रहे जिसके चलते अकसर विजय बहुगुणा मीडिया के निशाने पर रहते थे। केदारनाथ में आई दैवीय आपदा के बाद विजय बहुगुणा का तख्तापलट हुआ और हरीश रावत को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने भी सूचना महकमें को अपने पास रखा जिसका परिणाम यह हुआ कि सूचना महकमें के कुछ अफसर विज्ञापनों, फिल्मों व टीवी चैनलों को दिये जाने वाले विज्ञापनों में बडे नाटकीय अंदाज से बडे-बडे खेल खेलते रहे और यही कारण रहा कि यह सूचना महकमा ही हरीश रावत को गद्दी से हटवा गया? उत्तराखण्ड में भाजपा की सरकार आई तो त्रिवेन्द्र सिंह रावत को उत्तराखण्ड का नया मुख्यमंत्री बनाया गया और उन्होने सूचना महकमा अपने पास रखा। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के शासनकाल में तो सूचना महकमें के कुछ अफसरों ने तानाशाही की सारी सीमायें लांघ दी और पूर्व मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार व मीडिया कॉडिनेटर तो सूचना महकमें को अपनी निजी सम्पत्ति समझने लगे और सूचना महकमें के एक दो पॉवरफुल अफसरों व मीडिया सलाहकार, मीडिया कॉडिनेटर ने कुछ समाचार पत्रों व पोर्टलों को गुलाम बनाने के लिए उनके विज्ञापन रूकवाये और सूचना महकमें में बैठकर वह कुछ मीडियाकर्मियों के खिलाफ बडी-बडी साजिशें रचते रहे? सूचना महकमें का एक मठाधीश अफसर तो महकमें केा अपनी जागीर ही समझ बैठा और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत घृतराष्ट्र बनकर सूचना विभाग में चलते रहे कमीश्नखोरी व भ्रष्टाचार के तांडव को रोकने के लिए इसलिए कभी आगे नहंी आये क्योंकि वह अपने इस सिंडिकेट के सहारे उन मीडियाकर्मियों पर नकेल लगाने का तांडव कर रहे थे जो सरकार के कार्यकाल में हो रहे भ्रष्टाचार व घोटालों को लेकर उत्तराखण्ड की जनता को सच्चाई से रूबरू करा रहे थे। सूचना महकमें के कुछ अफसरों व उनके सलाहकार, मीडिया कॉडिनेटर ने ही पूर्व मुख्यमंत्री को सत्ता से बेदखल कराने में पर्दे के पीछे सेे बडी भूमिका निभाई? अगर यह अफसर व सलाहकार पूर्व मुख्यमंत्री को सलाह देते कि किसी भी मीडियाकर्मी के साथ द्धेषभावना से काम नहीं किया जायेगा और सबको एक समान लेकर चला जायेगा लेकिन इस सिंडिकेट ने पूर्व मुख्यमंत्री की आंखों पर ऐसी पट्टी बांध दी कि उन्होंने इस झूठ की पट्टी को अपनी आंखों पर ही बांधकर रखा और कुछ मीडियाकर्मियों के विज्ञापन रोककर उन्हें अपनी ताकत का एहसास कराने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाये रखा? अब नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत जो कि स्वच्छ व ईमानदार छवि के व्यक्ति हैं और सूचना महकमा भी उनके पास है तो उन्होंने आते ही भले ही ईमानदार अधिकारी रणवीर सिंह चौहान की सूचना महानिदेशक के रूप में नई नियुक्ति की हो लेकिन सबसे बडा सवाल यही तैर रहा है कि सूचना महकमें में चंद अफसर वर्षों से एक ही सीट पर डटे हुये हैं उन्हें रिशफलिंग करने के लिए क्या मुख्यमंत्री कोई बडा कदम उठाने के लिए आगे आएंगे? बहस यह भी छिड रही है कि मुख्यमंत्री को इस बात का भी आंकलन करना चाहिए कि सूचना महकमें में कौन ऐसे अफसर हैं जो लगातार पॉवरफुल हो रहे हैं और कौन ऐसे अफसर हैं जो हाशिये पर हैं? अगर मुख्यमंत्री ने सूचना महकमें में वर्षों से एक ही सीट पर डटे अफसरों को इधर से उधर करने के लिए अगर कोई खाका न बनाया तो विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री को इसका खामियाजा भुगतना पड सकता है?
ईमानदार महानिदेशक पर नजरें
देहरादून। उत्तराखण्ड के ईमानदार छवि के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने सबसे महत्वपूर्ण विभाग सूचना विभाग में स्वच्छ व ईमानदार छवि के अफसर रणवीर चौहान को महानिदेशक पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है अब उन पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं कि वह विभाग में कुछ अफसरों द्वारा चंद मीडियाकर्मियों के साथ हो रहे भेदभाव को रोकने की दिशा में क्या कदम उठायेंगे क्योंकि उनके मधुर स्वभाव को देखते हुए मीडियाकर्मियों में एक आशा की किरण है कि अब शायद सूचना महकमें में चंद मीडियाकर्मियों के विज्ञापन बंद करने का चंद अफसरों द्वारा खेले जाने वाला खेल नहीं चल पायेगा।