नये सीएम ने ताजपोशी के बाद दिया जेल में कैदियों को खुशियों का तोहफा

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तीरथ सिंह रावत भाजपा शासन में रहे थे कारागार मंत्री
राजधानी की जेल में बन रहा लाजवाब भोजन
बंदियों के लिए लगा दिये दो पीसीओ
हफ्ते में दो दिन नहीं अब पांच दिन फोन करने की सुविधा
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के राज में राजधानी की जेल में कुछ छोटे अफसरों को भ्रष्टाचार के दलदल में डूबते हुए देखा जा रहा था और कैदियों को जिस तरह से घटिया किस्म का खाना परोसा जाता था उससे जेल में बंद कैदियों का जीवन नर्क के समान बना हुआ था लेकिन जब उत्तराखण्ड की अधिकांश जेलों में आईपीएस अफसरों को जेल अधीक्षक के रूप में तैनात किया गया तो उससे जेल के कुछ बडे व छोटे अफसरों की नींद उड गई थी। अब जैसे ही राज्य में नये मुख्यमंत्री की ताजपोशी हुई और उन्हें जेलों में कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं के बारे में जब बारिकी से पता चला तो मुख्यमंत्री ने सबसे पहले राजधानी की जेल में बंद कैदियों को खुशियों का बडा तोहफा देते हुए आईजी जेल को जेल के अन्दर लाजवाब खाना बनवाने के आदेश दिये जिसके बाद जेल अधीक्षक ने जेल में बनने वाले खाने की गुणवत्ता को इस स्तर पर लाकर रख दिया कि जेल से छूटने वाले कैदी भी जेल अधीक्षक की तारीफों के पुल बंाधते हुए नहीं थक रहे हैं। इतना ही नहीं जेल के अन्दर कैदियों को फोन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अब दो पीसीओ स्थापित किये गये हैं और जिन कैदियों को हफ्ते में दो बार बात करने की अनुमति होती थी उन्हें अब हफ्ते में पांच बार फोन करने की इजाजत दी गई है। जेल में जिस तरह से जेल अधीक्षक के रूप में आईपीएस की तैनाती हुई है उससे राजधानी के अन्दर तो जेल के अन्दर का बिगड चुका सिस्टम एक सीध में चलता हुआ दिखाई दे रहा है और जेल में बंद कैदी भी नये मुख्यमंत्री की इस पहल को सैल्यूट कर रहे हैं इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि चंद समय के अन्दर ही नये मुख्यमंत्री ने किस तरह से राज्य के अन्दर बिगड चुके सिस्टम को पटरी पर लाने के लिए बडी पहल शुरू कर दी है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड की अधिकांश जेलों में बंद कैदियों को खाना इतने निम्न स्तर का दिया जाता था कि उसे खाना भी एक बडी महाभारत होता था और यह सवाल उठते थे कि जब सरकार जेल प्रशासन को पूरा अनाज देती है तो फिर जेल में बंद कैदियों को घटिया खाना क्यों परोसा जाता है? गजब बात तो यह थी कि गृह महकमा उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के पास था लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में कुछ जेलों में चल रहे भ्रष्टाचार के नेटवर्क को तोडने की दिशा में कोई पहल नहीं की और वहां कैदियों को मिलने वाले खाने पर भी कभी कोई चिंतन किया हो ऐसा देखने को नहीं मिला। उत्तराखण्ड सरकार ने राज्य की अधिकांश जेलों में कुछ समय पूर्व जेल अधीक्षकों की तैनाती आईपीएस अधिकारियों के रूप में की। राजधानी की जेल की कमान आईपीएस स्वेता चौबे को सौंपी गई तो उन्होंने जेल के अन्दर का सिस्टम समझना शुरू किया और वहां कुछ सुधार लाने की दिशा में अपने कदम आगे बढाये इसी बीच उत्तराखण्ड में सत्ता परिवर्तन हुआ और मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी हुई तो उन्होंने राज्य में बिगडे सिस्टम को पटरी पर लाने की दिशा में अपने कदम आगे बढाने शुरू किये। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत चूंकि पूर्व में भाजपा शासनकाल के अन्दर कारागार मंत्री थे तो उन्होंने इस बात का इल्म था कि राज्य की जेलों में कैदियों को कैसा भोजन मिलना चाहिए और उनकी धरातल पर क्या-क्या दिक्कते हैं। चर्चा है कि मुख्यमंत्री ने आईजी जेल से जेलों में खाने की गुणवत्ता को उत्तम करने व कैदियों की दिक्कतों को परखकर उनका हल निकालने के भी आदेश दिये थे इसके चलते आईजी जेल ए.पी.अनशुमन ने राजधानी जेल की कमान संभालने वाले स्वेता चौबे को राजधानी की जेल में खाने की गुणवत्ता के साथ कैदियों की पीसीओ की समस्या का हल निकालने के आदेश दिये थे। नये मुख्यमंत्री ने जैसे ही जेल में बंद कैदियों को राहत देने की दिशा में अपने कदम आगे बढाये तो स्वेता चौबे ने जेल के अन्दर खाने की गुणवत्ता को इतना बेहतर बना दिया कि जेल से छुटने वाले कैदी भी यह कहने से नहीं चूक रहे कि जेल में खाना होटल की तरह लाजवाब मिल रहा है जिसके बारे में कभी कोई कैदी कल्पना भी नहीं कर सकता। इतना ही नहीं जेल के अन्दर एक मात्र पीसीओ था जिससे कैदी एक हफ्ते में अपने परिवार वालों से सिर्फ दो बार बात किया करते थे लेकिन नये सीएम ने कैदियों को होली का तोहफा देते हुए जेल के अन्दर दो पीसीओ स्थापित करा दिये और अब कैदियों को एक सप्ताह में पांच बार अपने परिवार से बात करने की अनुमति दे दी गई है। यह सबकुछ इसलिए भी सम्भव दिखाई दे रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत वर्षों पूर्व भाजपा सरकार में कारागार मंत्री थे और वह अपने कार्यकाल में खुद जेलों की सच्चाई देखने के लिए भी वहां जाया करते थे लेकिन उसके बाद से ही जेल महकमा मुख्यमंत्री के पास होने के कारण कोई भी मुख्यमंत्री जेल की सच्चाई को परखने के लिए कभी वहां नहीं गया।

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