सीएम साहबः खुलेआम धूम रहे सिडकुल घोटाले के मगरमच्छ

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दो आईजी, एक डीआईजी भी नहीं खोज पा रहे ‘भ्रष्टाचारी’
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कांग्रेस शासनकाल में हुये सिडकुल घोटाले की मात्र एक माह के भीतर जांच पूरी करने का आदेश तत्कालीन आईजी गढवाल को दिया था लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर हो रही यह फाइल लगभग एक साल तक तत्कालीन आईजी के कार्यकाल में ठंडे बस्ते में चली गई और उसके बाद जब आईजी अभिनव कुमार को गढवाल रेंज का आईजी बनाया गया तो उन्होंने इस जांच को जल्द से जल्द पूरा करने की दिशा में काफी तेजी दिखाई और ऐसी सम्भावना बन रही थी कि शायद इस बडे घोटाले के गुनाहगार जल्द सलाखों के पीछे होंगे लेकिन उन्हें पदोन्नति से एक माह पहले ही गढवाल रेंज से रूखसत कर दिया गया और अब रेंज की कमान डीआईजी के हाथों में है और उन्होंने भी सिडकुल घोटाले की जांच में तेजी लाने का दावा किया था लेकिन यह जांच आखिर कहां खामोश हो गई इसको लेकर एक बार फिर राज्य के अन्दर सवाल खडे होने लगे हैं? अब उत्तराखण्ड की कमान स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के हाथों में है और राज्यवासियों की नजर उन पर जा टिकी है कि वह सिडकुल घोटाले के खुलेआम धूम रहे बडे मगरमच्छों को कब जेल की सलाखों के पीछे पहुंचायेंगे? अगर मुख्यमंत्री ने इस घोटाले में सभी गुनाहगारों को बेपर्दा कर सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए अपनी इच्छाशक्ति दिखाई तो वह राज्य के अन्दर आवाम के मन में एक बडे हीरो बन जायेंगे क्योंकि जिस तरह से स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि राज्य के अन्दर भ्रष्टाचार किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। अब देखने वाली बात है कि क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री इस जांच को जल्द से जल्द पूरा कराने का टास्क पुलिस के आला अफसरों की किसी टीम से कराने के लिए आगे आएंगे क्योंकि यह जांच हर बार क्यों रेंज कार्यालय में खामोश बस्ते में चली जाती है इसका आंकलन खुद ईमानदार मुख्यमंत्री को करना ही पडेगा?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने जैसे ही पदभार संभाला था तो उन्होंने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के तहत सत्ता चलाने का दम भरा था। त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कांग्रेस शासनकाल में हुये सिडकुल घोटाले की एक माह के भीतर जांच कराने का आदेश गढवाल रेंज के तत्कालीन आईजी अजय रौतेला को दिये थे जिसके बाद ऐसी सम्भावना बनी थी कि भ्रष्टाचारी जल्द से जल्द सलाखों के पीछे होंगे लेकिन अजय रौतेला के कार्यकाल में भ्रष्टाचार की यह जांच रद्दी की टोकरी में चली गई और एक साल तक इस जांच में कुछ भी नहीं हुआ। अजय रौतेला के बाद आईपीएस अभिनव कुमार को गढवाल रेंज का आईजी बनाया गया था जिन्होंने पदभार संभालते ही भ्रष्टाचार की इस फाइल को खंगालना शुरू किया और उन्होंने सभी जनपदों से सम्पर्क कर इस मामले की जांच करने वाले जांच अधिकारियों को जल्द से जल्द जांच पूरी करने के आदेश दिये थे और जिस तरह से वह बार-बार इस घोटाले की फाइल को खंगालने में जुटे हुये थे उससे भ्रष्टाचारियों के मन में अभिनव कुमार का एक बडा डर देखने को मिल रहा था। गजब बात तो यह रही कि अभिनव कुमार की पदोन्नति में एक माह का समय था लेकिन उससे पहले ही उन्हें शासन ने पदोन्नत कर गढवाल रेंज के आईजी पद से कार्यमुक्त कर एडीजी प्रशासन के पद पर तैनात कर दिया। अभिनव कुमार के बाद गढवाल रेंज का प्रभार डीआईजी नीरू गर्ग को सौंपा गया और उन्होंने भी इस घोटाले की जांच को लेकर जांच अधिकारियों के साथ बैठक की लेकिन एक बार फिर यह जांच कछुए की चाल चलती हुई दिखाई दे रही है? ऐसे में सवाल उठने तय हैं कि आखिरकार इस बडे घोटाले में वो कौन बडे मगरमच्छ शामिल हैं जिन पर हाथ डालने से कोई भी पुलिस अधिकारी आगे आने का साहस नहीं दिखा पा रहा है? अब राज्य में ईमानदार छवि के मुख्यमंत्री की ताजपोशी हो गई है कि तो अब सबकी नजरें इस बात पर लग गई हैं कि क्या मुख्यमंत्री सिडकुल में हुये बडे घोटाले की जांच के लिए पुलिस के कुछ आला अफसरों की एक टीम गठित कर उन्हें चंद समय के भीतर इस जांच को पूरी करने का आदेश देंगे जिससे राज्य के अन्दर एक संदेश जाये कि भ्रष्टाचार चाहे किसी ने भी किया हो उसे बक्शा नहीं जायेगा?

 

तो पूर्व सलाहकार घोटालेबाजों को बचाता रहा?
उत्तराखण्ड में पिछले चार साल से भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का ढोल पिटने वाले उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पदभार संभालने के बाद हुंकार लगाई थी कि सिडकुल घोटाले की जांच एसआईटी करेगी और जांच की मॉनिटिरिंग गढवाल रेंज के प्रभारी को सौंपी गई थी लेकिन यह जांच चार साल से हवा में ही तैर रही है और बार-बार यही आशंकाएं उठ रही थी कि त्रिवेन्द्र रावत के एक पूर्व सलाहकार का इस भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ बडे मगरमच्छों से याराना है जिसके चलते वह इस जांच को आगे बढने ही नहीं दे रहा था और एक मीडियाकर्मी भी इस मामले में अपनी खुलकर भूमिका निभा रहा था। चर्चा है कि मीडियाकर्मी का शासन के एक बडे अफसर के यहां काफी प्रभाव है और उसी के चलते इस घोटाले की जांच को हमेशा फाइलों में ही दफन करने का खेल चलता रहा अब देखने वाली बात होगी कि नये मुख्यमंत्री घोटाले की जांच को चंद समय में कैसे पूरा कराकर भ्रष्टाचार के दलदल में डूबने वाले बडे मगरमच्छों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का आदेश देंगे।

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