राज्य के जंगल फिर जलने लगे धू धू कर

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राज्य के सियासी पारे में ज्यों ही तापमान बढा,ठीक उसके परिणाम राज्य की वन संपदा के राख होते हुए आवाम की बंद आँखों ने भी अवश्य ही देखा होगा । राज्य में वनाग्नि हर साल होती है,फिर भी आजतक वन विभाग के पास पर्याप्त संसाधनों का ठोठा बना हुआ है। इस वैज्ञानिक युग में भी वन विभाग पेड की टहनियों के सहारे आग पर काबू पाने के लिए जरूरत से अधिक प्रयास कर रहा है। विभाग के पास भारीभरकम बजट भी है लेकिन संसाधनों की खरीद फरोख्त क्यों नहीं की जाती यह भी यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है। नये साल की हर्षोल्लास के बीच राज्य के जंगल एक बार फिर धू धू कर आग की चपेट में हैं। आग धीरे-धीरे विकराल रूप लेती जा रही है। इसमें 82० हेक्टेयर क्षेत्रफल का जंगल आग से प्रभावित हुआ है। इसमें 42 हेक्टेयर वो क्षेत्र भी है जहां वृक्षारोपण किया गया था। कई हजारों पेड़ भी आग की भेंट चढ़ गए है। वन विभाग के अनुसार जंगलों में आग लगने के कारण इस साल अभी तक 4० लाख रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है। आग लगने की सबसे अधिक घटनाएं गढवाल मंडल में हुई है। गढ़वाल मंडल में करीब 24० के लगभग घटनाएं हो चुकी है। इस साल जनवरी से ही आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी थी. बावजूद इसके वन विभाग की कार्रवाई फाइलों, बैठकों से आगे नहीं बढ़ पा रही है। आग लगने के कारण जो नुकसान बताया जा रहा है, वो भी केवल जंगलों का नुकसान है। इसके कारण कितनी बहुमूल्य वनस्पतियां नष्ट हो गई, कितने जीव जंतु आग की भेंट चढ़ गए। जैव विविधता को कितना नुकसान हुआ , इसका कोई वैल्यूशन नहीं किया गया है। वर्ष 2०2० में मात्र 18० हेक्टेयर क्षेत्रफल आग से जलकर नष्ट हुआ था। वहीं इस साल अभी तक जब गर्मियां शुरू ही हो रही हैं, 85० हेक्टेयर क्षेत्रफल आग की भेंट चढ़ चुका है। वन विभाग को इस बार कैंपा फंड से वन प्रहरी रखने के लिए भी साठ करोड़ रूपए मिले है। वन विभाग करीब दस हजार वन प्रहरी नियुक्त कर रहा है। मुख्यमंत्री ने इसमें पचास फीसदी वन पंचायतों से जुडी महिलाओं को रखने के निर्देश दिए हैं। इन वन प्रहरियों को वन विभाग सात से दस हजार रूपए प्रति महीने मानदेय देगा। उत्तराखंड में हर साल बेशकीमती वन संपदा आग लगने पर यूं ही राख हो जाती है लेकिन अफसरों की फौज से भरा वन विभाग आज तक कोई ठोस मैक्नेजेम डेवलप नहीं कर पाया। वन कर्मी आज भी टेहनियो को काटकर आग बुझाते हुए आ रहे हैं। जंगलों के आग की भेंट चढऩे , आग बुझाने में लापरवाही बरतने पर  आज तक किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई तक नहीं हुई है। हर साल वॉच टावर, वायरलेस सेट, कंट्रोल रूम की संख्या गिनाकर वन विभाग जंगलों के प्रति अपने दायित्वों की पूर्ति कर लेता है।

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