त्रिवेन्द्र कार्यकाल में फॉरेस्ट फायर सॉफ्टवेयर की हो जांच

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संवाददाता
देहरादून। आम आदमी पार्टी के नेता व पूर्व दर्जाधारी राज्य मंत्री रविन्द्र जुगरान ने कहा है कि एफएसआई जिसका मुख्यालय देहरादून में है एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल में वृक्षारोपण एवं वनाग्नि प्रबंधन के लिए फॉरेस्ट फायर सॉफ्टवेयर की जांच की जानी चाहिए।
यहां पार्टी के प्रदेश कार्यालय में पत्रकारों से रूबरू होते हुए उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनके दरबारियों पर गंभीर आरोपों में संलिप्त होने की बात कही । उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने वर्ष 2०19 में वृक्षारोपण एवं वनाग्नि रेाकने हेतु 47,436 करोड की राशि स्वीकृत की थी जिसमें 27 राज्यों में उत्तराखंड राज्य भी शामिल था। जिसके तहत आधुनिक तकनीक और सेटेलाइट की मदद से वनों में वनाग्नि से बचने समेत कई तकनीक शामिल थी। जुगरान ने कहा कि, आम आदमी पार्टी की इस प्रोजेक्ट को लेकर चिंता, शंका, अंदेशा इस बात को लेकर है कि जिस प्रकार से पायलट प्रोजेक्ट हेतु कंपनी का चयन किया गया, वो प्रथम दृष्टि में किसी विशेष कंपनी या समूह पर महरबानी करने के उद्देश्य से सभी मानकों को ताक पर रखकर सारी प्रक्रिया अपनाई गई है जो कहीं से भी न्यायोचित नहीं है। उन्होंने कहा कि इस पायलेट प्रोजेक्ट को एलौट करते हुए भारी भरकम बजट को ठिकाने लगाने का खेल प्रारंभ करने के लिए जो ताना बाना बुना गया है जिसकी जांच होनी चाहिए, समय रहते ऐसा नहीं किया जाता है तो उच्च न्यायालय की शरण में जाने पर विचार विमर्श कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जिस कंपनी को यह पायलेट प्रोजेक्ट एलौट किया गया उसके पास इस तरह के कार्यों का कोई भी अनुभव नहीं है और इस कंपनी की मुख्य कंपनी यू एफ ओ पर 2०15 में 11०० एकड के जमीन घोटाले में उनके निदेशक नरेन्द्र हेते व संजय गायकवाड पर ईओ डब्ल्यूईडी व पुलिस द्वारा भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं। इस कंपनी को 11 फरवरी 2०2० को एफ एस आई द्वारा पायलेट प्रोजेक्ट हेतु सरकारी पत्र कैसे जारी किया गया। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में कैसे एक विदेशी कंपनी रजोरटेक जिसके पास यह तकनीक थी उसने आनन फानन में एक अन्य कंपनी के साथ अनुबंध खत्म किया जो कि 31 जुलाई तक था। उसके बाद जिस वीईपीएल को प्रोजेक्ट मिला था उसके साथ सांठ गांठ की और उसी पायलेट प्रोजेक्ट के आधार पर टेंडर बनाना शुरु किया गया और 17 दिसंबर 2०2० को जारी किया जिसकी निविदाएं 8 फरवरी 2०21 को खोली गई ।
उन्होंने कहा कि 7 फरवरी 2०21 को रैणी गांव चमोली में आपदा आई और राज्य सरकार व भारत सरकार उससे निपटने की कोशिश कर रही थी वहीं दूसरी ओर उसी दिन उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय के खास लोग अगले ही दिन 8 फरवरी को वीपीईएल कंपनी के मुंबई स्थित कार्यालय में किस विशेष प्रयोजन से गए हुए थे। इसी दिन निविदा खोली जानी थी। मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार के एस पंवार समेत उसमें वहां कौन कौन लोग शामिल थे। उन्होंने कहा कि कंपनी के निदेशक अभय हेते व गिरीश बदेखर के साथ ये लोग किसी खास मकसद में लगे थे जबकि अगले दिन 9 फरवरी को ये लोग मुंबई से देहरादून इंडिगो की एक ही फलाईट 6 ई 6857 से शाम 6 बजे देहरादून पहुंचे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री घोषणा कंपनी और सरकार में विशेष बैठकों का दौर चला और 12 फरवरी 2०21 को मुख्यमंत्री रहते त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने वन मुख्यालय देहरादून में वनाग्नि प्रबंधन एंव सुरक्षा की बैठक में अधिकारियों को उक्त विशेष कार्य हेतु निर्देश दिए कि वन मुख्यालय पर तत्काल इंटीग्रेटेड फायर कमांड एंड कंटोल सेंटर की स्थापना की जाए। उन्होंने कहा कि वनाग्नि प्रबंधन के लिए देश का पहला सैंटर होगा। सवाल ये है कि जब देश में ऐसा कोई कार्य किया ही नहीं गया तो तकनीक पर सवाल उठना लाजमी है। वीईपीएल और रजोरटेक की साझेदारी के बाद जो पायलेट प्रोजेक्ट के आधार पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाई गई एफआरआई से उसके आधार पर ही 5 राज्यों के लिए उत्तराखंड समेत टैंडर 17 दिसंबर 2०2० को निकाला। उन्होंने कहा कि हमारी चिंता यह है कि स्वीकृत 47,436 करोड रुपये की राशि का सदुपयोग हो। साथ ही वृक्षारोपण एवं वनाग्नि प्रबंधन के लिए स्वीकृत धनराशि की बंदरबांट को रोका जा सके। उन्होंने कह कि हमें सूत्रों के आधार पर जो जानकारी मिली है वो हम केन्द्र और राज्य सरकार के संज्ञान में ला रहे हैं । उन्होंने कहा कि ज्ञाज रहे कि 15 मार्च को एफएसआई देहरादून में इस मामले में प्रेजेंटेशन होनी थी इसलिए अब सरकार संज्ञान लेकर इस मामले की सत्यता उजागर करती है तो बेहतर होगा, अन्यथा हम न्यायालय की शरण में जाने पर भी विचार कर सकते हैं।

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