क्या त्रिवेंद्र सरकार के सभी राज्य मंत्री बने रहेंगे या पुनः नियुक्ति होगी?
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड सरकार व भाजपा प्रदेश के मुखिया बदलने के बाद मंत्रियों की पुनः शपथ व नए मंत्रियों के विभाग बंटवारे के बाद सूबे में चर्चा ने जोर पकड़ा ही था कि त्रिवेंद्र सरकार की टीम के सभी दर्जाधारी व सलाहकार भी रिपीट होंगे या तीरथ अपनी नई टीम बनाएंगे? दरसल भाजपा व्यक्तिवाद से अलग कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल है। ऐसा ही संदेश मुखिया बदलने के बाद भाजपा का हर नेता दे भी रहा हैं। जो दर्जाधारी है उनमें अधिकांश संगठन से जुड़े लोग ही हैं लेकिन जो विशेष रूप से त्रिवेंद्र की कृपा से बने थे उनको लेकर तीरथ के फैसले पर सभी की निगाह लगी हैं ओर उम्मीद है कि मंत्री परिषद की ज्यादा फेरबदल न करने का संदेश देने से वो तमाम दर्जाधारी व सलाहकार सिंडिकेट भी प्रसन्न हो रहा है कि उनको कोई खतरा नही हैं लेकिन तीरथ ने सत्ता सम्भालते ही त्रिवेंद्र के फैसलों को पलटा फिर उनके चहेते अधिकारियों को ओर क्राइम स्टोरी का संज्ञान लेते हुए त्रिवेंद्र के सलाहकार सिंडिकेट को चलता कर दिया।
तीरथ सिंह रावत त्रिवेंद्र के हर कदम से अलग कार्य कर सन्देश दे रहें हैं कि अब सूबा सीएम आवास में कैद नही है। दरसल त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हर फैसला लेने ने बहुत देरी की उसी का परिणाम रहा कि मंत्रियों के पद तक चार साल तक खाली पड़े रहे। जिसका बड़ा कारण भी त्रिवेंद्र की विदाई रहा। अब तीरथ सिंह रावत की परीक्षा है की वो चुनावी वैतरणी पार करने के लिए अपनी टीम खड़ी करेंगे या पूर्ववर्ती टीम के साथ ही अपना चुनाव,सल्ट चुनाव व लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। सूबे में ऐसी चर्चा है तीरथ सिंह रावत पर अपनी टीम नही है ऐसे में वो इसी टीम से संगठन के सहारे सभी चुनावों में जोर लगाएंगे। वही राजनीतिक जानकारों की माने तो तीरथ उत्तराखण्ड के अभिमन्यु न बन जाएं? तीरथ के चारों ओर अपने कुनबे के ही ऐसे योद्धा हैं जो तीरथ को इस चक्रव्यू से निकलने से पहले ही ढेर न कर दें? चूंकि त्रिवेंद्र अपनी टीस का बदला लेंगे तो वही संगठन की कमान त्रिवेंद्र सरकार के सबसे मजबूत मंत्री मदन कौशिक के हाथ में हैं। उत्तराखण्ड भाजपा की राजनीति में केंद्रीय शिक्षा मंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री निशंक भी बड़े महारथी हैं। जिनके पास संगठन से लेकर सरकार व जनता के बीच तक बड़ी टीम है जो किसी का भी खेल बिगाड़ने के खिलाड़ी माने जाते हैं? इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री तथा महाराष्ट्र व गोआ के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी तीरथ के गुरु पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी के धूर विरोधी हैं? ऐसे में विधायकों के साथ साथ दर्जा धारियों की भूमिका भी बड़ा रोल रखती हैं। इसीलिए तीरथ सिंह रावत को इस माहौल को जल्द परख कर अपनी निजी टीम खड़ी करनी होगी तभी कुछ सफलता मिल सकती है। तीरथ सिंह रावत दिल्ली से अपने कार्यों पर मोहर भी लगवा आये। पार्टी अध्यक्ष जेपी नडडा को पूरी जानकारी दे आये की हम अपने ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बेतुके फैसलों व कथित सिंडिकेट को बदलकर ही खुलकर काम कर पाएंगे। दिल्ली जाते जाते तीरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र की सलाहकार टीम को बाहर का रास्ता दिखाया। माना जा रहा है दर्जाधारीयों की लिस्ट तो बढ़ेगी लेकिन तीरथ की डायरी में शामिल त्रिवेंद्र के करीबी दर्जाधारी बाहर जाएंगे? पार्टी के सक्रिय कार्यकताओं को ही सरकार में जिम्मेदारी दी जाएगी ये संदेश तीरथ सिंह रावत दे चुके हैं। फिलहाल तीरथ के फैसलों से पार्टी का कार्यकर्ता से लेकर आम व्यक्ति उत्साहित है और मुख्यमंत्री व जनता के बीच मे दर्जाधारी सिंडिकेट तीरथ सिंह रावत तोड़ने में कामयाब होंगे। ‘क्राईम स्टोरी’ ने खुलासा किया था कि त्रिवेंद्र के दो करीबी ‘कैसे बने करोड़पति’ पर मुख्यमंत्री ने जिस प्रकार संज्ञान लिया। उससे मीडिया जगत भी उत्साहित है कि सही को सही स्वीकारने वाला कोई मुखिया आया है इससे पहले त्रिवेंद्र की नापसन्द वाली कोई खबर कही छपती थी तो पत्रकारों को धमकाया जाता था विज्ञापनों पर रोक लगाई जाती थी। यहाँ तक कि जेलों में डलवा दिया गया। स्थानीय छोड़कर दिल्ली से विशेष रूप से मीडिया पर नकेल डालने के लिए त्रिवेंद्र ने रमेश भट्ट को बुलाया था। रमेश भट्ट का अपना मीडिया सिंडिकेट था अपनी फिल्में बनवाता था और विज्ञापनों पर खूब सौदेबाजी की जाती थी। मासहब जिसको हरी झंडी देते थे वो ही सीएम से मुलाकात कर सकता था। तीरथ आवास कार्यकर्ताओं के लिये खुला है तो त्रिवेंद्र आवास केवल चंद दर्जाधारी व सलाहकारों के लिये ही खुला होता था। ऐसे में पूरे सूबे की निगाह त्रिवेंद्र के दर्जाधारियों की पुनर्नियुक्ति को लेकर लगी है।