चंद एक्स सीएम को अपनों ने ही ‘लूटा’

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मुखियों की पीठ के पीछे करते रहे भ्रष्टाचार
राजनेता की कुर्सी गई तोे सब खत्म लेकिन अफसर तो अफसर ही रहेगा?
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड का इतिहास गवाह है कि राज्य में अधिकांश एक्स सीएम ने अपनी किचन टीम मे कुछ अफसरों पर अभेद भरोसा किया और उन्हें यह विश्वास रहा कि उनके यह अफसर पारदर्शिता और स्वच्छता के साथ काम करेंगे। चंद एक्स सीएम तो अपने करीबी कुछ अफसरों पर इतना अभेद भरोसा करते चले गये कि राज्य के अन्दर हमेशा यह बहस चलती रही कि क्या इन अफसरों ने अपने मुख्यमंत्री पर कोई ऐसा वशीकरण कर लिया था जिसके चलते चंद मुखियाओं की पीठ के पीछे वह भ्रष्टाचार का बडा-बडा खेलते चले गये और उनके मुखिया को इसकी भनक भी नहीं लग पाई थी? चंद एक्स सीएम को उनके कुछ करीबियों अफसरों ने अपने भ्रम जाल मे इतना कैद किया हुआ था कि वह इन अफसरों के बुने जाल मे फंसते चले गये और उसी के चलते यह कुछ अफसर भ्रष्टाचार की सारी हदों को पार करते हुए दौलत का इतना बडा किला अपने लिये खडा करने में कामयाब हुये थे जिसकी कल्पना शायद उनके राजनीतिक आका ने कभी की भी नहीं होगी? चंद एक्स सीएम यह समझ ही नहीं पाये कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी बहुत नसीब से मिली है और अगर यह कुर्सी उनके हाथ से चली गई तो दुबारा उनका राजनीति में ऊपर उठना असम्भव हो जायेगा और अफसर तो अफसर है वह हर सरकार मे अफसर ही रहेगा इसलिए वह अपने करीबी अफसरों के मोह जाल मे फंसकर अपनी सबसे ऊंची कुर्सी को गवा बैठे थे और आज वह यह सोचकर पछताते हैं कि अगर उन्हांेने अपने आसपास कुछ अफसरों की टोली न बनाई होती तो शायद वह सत्ता मे आज भी सरताज दिखाई देते? चंद एक्स सीएम को अपनों ने ही लूटा और आज वो राजनेता उत्तराखण्ड की राजनीति में अपना वजूद खोज रहे हैं?
उत्तराखण्ड जबसे बना तबसे सभी एक्स सीएम ने भ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ बडा युद्ध लडने का ऐलान किया था और साफ संदेश दिया था कि उनके शासनकाल मे भ्रष्टाचार और घोटालों का खेल नहीं हो पायेगा लेकिन ऐसा सोचने वाले चंद एक्स सीएम इस भ्रम मे रहे कि वह अपनी टोली मे जिन कुछ अफसरों को पॉवरफुल बना रहे हैं वह उनके साथ उनके विजन पर आगे बढेंगे। चंद एक्स सीएम जिस जनता के बल पर सबसे बडी कुर्सी पर आसीन हुये वह अपनी टोली मे शामिल कुछ अफसरों के बुने जाल में इस कदर फंसे कि उन्हें यह पता ही नहीं चला कि वह आम जनमानस से दूर होकर अपने कुछ अफसरों के बताये रास्ते पर जिस तरह आगे बढे हुये हैं कहीं वह उनके लिए यह रास्ता कांटो भरा तो नहीं हो जायेगा? हैरानी वाली बात है कि पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद खण्डूरी जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा सख्त रूख अपनाकर दिखाई देते थे उनके शासनकाल में भी उनका एक करीबी अफसर वो खेल खेलने मे जुट गया था जिसकी कल्पना शायद कभी पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूरी ने नहीं की थी? खण्डूरी के करीबी अफसर के कारनामो का शोर जिस तेजी के साथ मचा उससे सवाल खडे हुये कि आखिरकार कोई भी पूर्व मुख्यमंत्री क्यों चंद अफसरों को अपना करीबी मानकर उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों पर अपनी आंख बंद कर लेते हैं?
उत्तराखण्ड के अन्दर पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, त्रिवेन्द्र सिंह रावत के शासनकाल मे भी कुछ अफसर इतने पॉवरफुल बने हुये थे कि पूर्व मुख्यमंत्री उन पर अभेद भरोसा करते चले गये थे और इन अफसरों ने अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों पर सम्भवतः ऐसा वशीकरण कर रखा था कि वह इन अफसरों की टोली से अपने आपको कभी मुक्त नहीं कर पाये थे जिसके चलते उनकी कुर्सी पर दाग लगता रहा और उस दौर मे जिस तेजी के साथ भ्रष्टाचार और घोटालों का खेल हुआ उससे उत्तराखण्ड की सियासत मे हमेशा एक बडी उथल-पुथल मची थी? त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी शपथ लेने के दौरान साफ ऐलान किया था कि उनके शासनकाल मे भ्रष्टाचार और घोटालों का काला खेल नहीं चल पायेगा लेकिन वह भी कुछ अफसरों की टोली से ऐसे घिरे कि उन अफसरों ने एक्स मुख्यमंत्री को सही और गलत मे अंतर बताने से अपने आपको दूर रखा और कुछ शासन और चंद पुलिस के अफसर उन्हें अपने वशीकरण में इस कदर फसा चुके थे कि वह अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए ऐसे खेल खेलते चले गये थे जिसका खामियाजा शायद त्रिवेंद्र रावत को भुगतना पडा था? सवाल यह उठता है कि आखिरकार जब सरकार के मुखिया को पारदर्शिता और स्वच्छता के साथ सरकार चलानी होती है तो उनके लिए सभी अफसर एक समान होने चाहिए लेकिन कुछ अफसर हमेशा ऐसा चक्रव्यूह रचते हैं कि वह सत्ता मे अपने आपको पॉवरफुल बनाकर दौलत कमाने के उस मिशन पर आगे बढ जाते हैं जो सरकार के लिए भविष्य में एक सिरदर्द बन जाता है?

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