देहरादून (संवाददाता)। 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी और राज्य के डीजीपी ने संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रस्तुत पैनल में अपना नाम शामिल नहीं किए जाने पर आपत्ति व्यक्त की है। हैरानी वाली बात है कि डीजीपी ने राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड काडर चुन लिया था और सबसे अह्म बात यह है कि एएसपी से लेकर अपर पुलिस महानिदेशक तक अभिनव कुमार को उत्तराखण्ड में ही पदोन्नति मिली है तो फिर कैसे संघ लोक सेवा आयोग ने डीजीपी की डीपीसी में अभिनव कुमार का नाम शामिल नहीं किया यह समझ से परे ही नजर आया। अब डीजीपी ने अपने अभ्यावेदन में गृह मंत्रालय से राज्य सरकार से दुबारा पैनल प्रस्ताव मंगाकर यूपीएससी के फैसले पर पुर्नविचार करने का अनुरोध किया है। चौबीस साल से उत्तराखण्ड में अपनी सेवा दे रहे आईपीएस अफसर का नाम डीपीसी में शामिल न किया जाना उत्तराखण्ड सरकार को भी नगवार गुजरा था और अब सबकी नजरें गृह मंत्रालय पर टिकी हुई हैं कि वह संघ लोक सेवा आयोग को दुबारा डीपीसी कराकर उसमें अभिनव कुमार का नाम शामिल करायें जिसके बाद सरकार स्थाई डीजीपी के नाम का चयन कर सके।
बता दें कि डीजीपी अभिनव कुमार ने राज्य की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को दिए एक ज्ञापन में औपचारिक रूप से इस मुद्दे को उठाया है, जिसमें दावा किया गया है कि यूपीएससी का निर्णय उच्च न्यायालय द्वारा जारी स्थगन आदेश का उल्लंघन करता है। इस बारे में पूछे जाने पर डीजीपी अभिनव कुमार ने बताया है कि उन्होंने तीस सितंबर को हुई डीपीसी के बाद राज्य सरकार को अपना अभ्यावेदन दिया है, जिस पर कानूनी राय लेने के बाद सरकार इसे पुनर्विचार के लिए यूपीएससी को भेज रही है। डीजीपी ने कहा कि डीपीसी की बैठक में राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर मुख्य सचिव ने भी अपना असहमति नोट दिया था, जो डीपीसी के मिनट्स में शामिल है। उन्होंने कहा कि उन्हें यकीन है कि यूपीएससी मुख्य सचिव के असहमति नोट, राज्य सरकार द्वारा भेजे जा रहे उनके अभ्यावेदन पर कानूनी राय लेने के बाद पुनर्विचार करेगा।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने अपने अभ्यावेदन में गृह मंत्रालय से राज्य सरकार से दोबारा पैनल प्रस्ताव मांगकर यूपीएससी के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने राज्य की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को दिए एक ज्ञापन में औपचारिक रूप से इस मुद्दे को उठाया है, जिसमें दावा किया गया है कि यूपीएससी का निर्णय उच्च न्यायालय द्वारा जारी स्थगन आदेश का उल्लंघन करता है। इस बारे में डीजीपी अभिनव कुमार का कथन है कि उन्होंने तीस सितंबर को हुई डीपीसी के बाद राज्य सरकार को अपना अभ्यावेदन दिया है, जिस पर कानूनी राय लेने के बाद सरकार इसे पुनर्विचार के लिए यूपीएससी को भेज रही है। डीजीपी ने कहा कि डीपीसी की बैठक में राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर मुख्य सचिव ने भी अपना असहमति नोट दिया था, जो डीपीसी के मिनट्स में शामिल है। उन्होंने कहा कि उन्हें यकीन है कि यूपीएससी मुख्य सचिव के असहमति नोट, राज्य सरकार द्वारा भेजे जा रहे उनके अभ्यावेदन पर कानूनी राय लेने के बाद पुनर्विचार करेगा।
आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने अपने अभ्यावेदन में गृह मंत्रालय से राज्य सरकार से दोबारा पैनल प्रस्ताव मांगकर यूपीएससी के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है. वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि वर्ष 1996 में उन्हें गृह कैडर आवंटित किया गया था क्योंकि उनका गृह जिला बरेली है, लेकिन अगस्त 2००० में उत्तराखंड राज्य की घोषणा की गई और सितंबर 2००० में उन्होंने उत्तराखंड कैडर चुना। लेकिन नवंबर 2००० में राज्य गठन के समय उन्हें उत्तर प्रदेश कैडर में रखा गया। इस निर्णय पर पुनर्विचार हेतु अभिनव कुमार ने उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश सरकार की सहमति से भारत सरकार को प्रत्यावेदन दिया, जिसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 2००5 में अस्वीकार कर दिया गया। भारत सरकार के इस निर्णय को अभिनव कुमार ने सक्षम न्यायालय में चुनौती दी। साल 2०14 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस मामले में अभिनव कुमार के पक्ष में स्थगन आदेश दिया, जो आज भी प्रभावी है. कैट इलाहाबाद के आदेश के मुताबिक अभिनव कुमार अभी भी उत्तराखंड कैडर में कार्यरत हैं। मुख्य सचिव को दिए गए ज्ञापन में अभिनव कुमार ने कहा कि उनकी 24 साल की सेवा के दौरान उन्हें सभी पदोन्नतियां उत्तराखंड सरकार द्वारा दी गई हैं। आखिरी बार 1 जनवरी 2०21 को उन्हें उत्तराखंड में ही एडीजी प्रमोशन दिया गया था। पिछले साल नवंबर 2०23 में उन्हें पुष्कर सिंह धामी सरकार ने कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया था। इससे पहले वह जुलाई 2०21 से नवंबर 2०23 तक मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं। 24 साल तक उत्तराखंड में सेवा देने के बावजूद तीस सितंबर 2०24 को यूपीएससी ने अभिनव कुमार का नाम उत्तराखंड डीजीपी के पैनल में शामिल करने से इनकार कर दिया। आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने यूपीएससी के इस फैसले को हाई कोर्ट के स्थगन आदेश के खिलाफ बताया है। प्रत्यावेदन में उन्होंने कहा है कि यूपीएससी के फैसले से उत्तराखंड में उनकी 24 साल की सेवा खत्म हो गई है।
आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने राज्य की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को दिए गए ज्ञापन के माध्यम से गृह मंत्रालय से राज्य सरकार से दोबारा डीजीपी पैनल का प्रस्ताव मांगकर यूपीएससी के इस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बैठक बुलाने का अनुरोध किया है। उत्तराखंड सरकार की ओर से प्रभारी डीजीपी अभिनव कुमार समेत छह आईपीएस अफसरों के नाम यूपीएससी को भेजे गए थे। आयोग ने 1995 बैच के दो आईपीएस अधिकारियों के साथ-साथ 1997 बैच के एक अधिकारी का नाम शामिल किया और 1996 बैच के अभिनव कुमार का नाम छोड़ दिया। यहां बता दें कि आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार उत्तर प्रदेश के समय से ही उत्तराखंड में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्हें उत्तराखंड में ही एएसपी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से अपर पुलिस महानिदेशक तक प्रमोशन मिला है। अब उत्तराखण्डवासियों की नजरें गृह मंत्रालय पर टिकी हुई हैं और वह यही चाहते हैं कि जिस पुलिस अफसर ने राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड मे ही अपनी सेवायें चौबीस साल दी हैं। संघ लोक सेवा आयोग दुबारा डीपीसी में अभिनव कुमार का नाम शामिल करके फिर उसके पैनल को उत्तराखण्ड सरकार को भेजा जाये।