धामी राज मंे कलमवीरों की ‘आजाद है कलम’

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बेदाग सीएम पर आखिर कोई कैसे लगा पायेगा दाग?
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद से ही देखने में आ रहा है कि राज्य के कलमवीरों ने कुछ सरकारों के कार्यकाल में अपने आपको डरा हुआ महसूस किया क्योंकि वह जब सच की आवाज को अपनी कलम से उभारने के लिए आगे आते थे तो उनकी कलम को कुचलने के लिए कुछ राजनेता आगे बढ निकलते थे और भाजपा के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने तो कलमवीरों की आजादी को अपनी पॉवर की कोठरी में कैद करने से भी परहेज नहीं किया था। एक पूर्व मुख्यमंत्री तो अपनी सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाज पर इतना आग बबूला हो जाता था कि वह उस कलमवीर को अपने यहां बुलाकर ऐसे धमकाता था जैसे कोई राजा महाराजा अपने खिलाफ उठने वाली किसी आवाज को दबाने के लिए सरेआम उसे अपने दरबारियों के सामने बेइज्जत करने के लिए आगे आते थे? उत्तराखण्ड के कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में कलमवीरों की कलम को कैद में रखने का जो हुनर दिखाया जा रहा था वह धामी राज मंे हवा-हवाई हो चुका है और पिछले तीन सालों से धामी राज मंे कलमवीरों की कलम को खुली आजादी दी हुई है कि वह अपनी कलम से जनता को राज्य का सच जरूर बतायें। सबसे अह्म बात यह है कि जब राज्य का मुखिया पारदर्शिता और स्वच्छता के साथ सरकार चला रहा है और उन पर अब तक के कार्यकाल मंे एक दाग भी नहीं लगा तो फिर कोई कलमवीर उनके खिलाफ आखिर क्या दाग लगा पायेगा जिससे कि आवाम की नजर में उन्हें कलमवीरों का दुश्मन बताया जा सके? मुख्यमंत्री ने कलमवीरों के हित में अपने राज मंे जो एक से एक फैसले किये और हर समय वह मीडिया से मिलने में कभी पीछे नहीं हटते उसी का परिणाम है कि आज राज्य के कलमवीरों को यह आभास हो चुका है कि पुष्कर सिंह धामी के शासनकाल में उनकी कलम आजादी से राज्य का सच आवाम के सामने परोस पा रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने युवा राजनीति के दौरान से ही राज्य की मीडिया के साथ अपने मधुर सम्बन्ध बना लिये थे और उनका एकमात्र उद्देश्य रहा है कि उत्तराखण्ड की राजनीति को स्वच्छ और पारदर्शी बनाकर रखा जाये। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लम्बे समय से राज्य की राजनीति को नजदीक से पहचानते आये हैं और वह राज्य की जनता की नब्ज भी पहचानते हैं कि उनका दिल कैसे जीता जा सकता है। मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने आम जनमानस के दिलों में जहां अपनी एक बडी जगह बना ली है वहीं उन्होंने राज्य के कलमवीरों को भी साफ संदेश दे रखा है कि उनके शासनकाल में कभी भी उनकी कलम को कैद नहीं किया जायेगा और वह अपनी लेखनी को राज्यहित में आजादी के साथ चला सकते हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के तीन साल के कार्यकाल में राज्य के कलमवीरों के मन में उनकी स्वच्छ राजनीति को लेकर जो एक बडी सोच पैदा हो रखी है उससे वह खुले मन से अपने विचार लिखने में कभी भी डर की भावना नहीं ला रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने हमेशा कलमवीरों में कभी भी छोटे-बडे का भेदभाव नहीं दिखाया और वह सबको साथ लेकर चलने में ही विश्वास दिखा रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर कलमवीरों ने जो विश्वास दिखा रखा है उसी का परिणाम है कि आज राज्य के सूचना विभाग में किसी भी अधिकारी या पत्रकार के बीच कोई अनबन दिखी हो ऐसा देखने को नहीं मिल पाया है क्योंकि सूचना महकमा भी कलमवीरों को साफ संदेश देता आ रहा है कि वह भी उनके परिवार का अंग हैं इसलिए सबको साथ चलाना चाहिए।
मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी राज्य के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गये हैं जो इस बात का ध्यान रखते हैं कि अगर कोई भी पत्रकार किसी बीमारी से ग्रस्त है और वह किसी प्राईवेट अस्पताल में अपना इलाज कराना चाहता है तो सरकार उस पत्रकार का सारा खर्च उठाने के लिए अपने आपको आगे कर चुकी है जिसके चलते अब कलमवीरों को इस बात का कोई भय नहीं है कि उनके सामने बीमारी को लेकर कोई समस्या आये तो वह अपना इलाज कैसे करा पायेंगे? मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कलमवीरों का दर्द इसलिए भी महसूस कर रखा है क्योंकि वह भी खुद पत्रकार रह चुके हैं इसलिए वह कलमवीरों के साथ कदमताल चलने में ही विश्वास दिखा रहे हैं। हालांकि भाजपा शासनकाल के दो पूर्व मुख्यमंत्री तो हिटलरशाही अंदाज में हर उस कलमवीर को अपनी पॉवर का तांडव दिखाते थे जो सरकार के कार्यकाल में हो रहे भ्रष्टाचार व घोटालों को लेकर समाचार पत्रों व सोशल मीडिया पर अपनी आवाज बुलंद करने के लिए आगे खडे होते थे? उत्तराखण्ड के काफी पत्रकारों पर भाजपा के एक शासनकाल में फर्जी मुकदमे लिखने का जो दौर चला था वह उत्तराखण्ड के इतिहास में हमेशा एक काला अध्याय बना हुआ ही दिखाई देता रहेगा। गजब की बात तो यह है कि भाजपा का एक पूर्व मुख्यमंत्री अपनी सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाज पर इतना बिलबिला जाता था कि अपने सरकारी आवास में बुलाकर वह उसे मिट्टी में मिला देने का भी खुला अल्टीमेटम देने से पीछे नहीं हटता था हालांकि अब एक नया दौर चल पडा है और धामी के इस दौर में राज्य के हर जनपद मंे कलमवीरों की कलम को आजादी मिली हुई है कि वह गलत को गलत और सही को सही लिखे उनकी कलम को कोई कैद नहीं करेगा।

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