प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड का इतिहास गवाह है कि कई पूर्व सरकारों में राजनीतिक दलालों ने अपनी दुकानें इतनी विशाल कर रखी थी कि उन दुकानों पर हमेशा उन लोगों की भीड उमडी रहती थी जो काफी सरकारी विभागों में अपना काम कराने में फिस्ड्डी साबित होते थे? राजनीतिक दलालों की सरकारी महकमों में दलाली का आलम यह था कि कुछ अफसर तो दलालों को अपने घर में ही सीधी एंट्री कराते थे और वहीं पर दलालों की फाइलों पर साइन हो जाया करते थे लेकिन जबसे राज्य की कमान सैनिक पुत्र ने संभाली है तबसे वह हर दिन उत्तराखण्ड की रक्षा भ्रष्टाचारियों से करने की बडी जंग लड रहे हैं और उन्होंने अपने कार्यकाल में सभी राजनीतिक दलालों की दुकानें उखाड कर फेंक दी हैं। मुख्यमंत्री के आक्रामक रूख का ही परिणाम है कि जो राजनीतिक दलाल हर समय दलाली को लेकर चर्चाओं में बने रहते थे उन राजनीतिक दलालों का शोर पुष्कर राज में बिलकुल खामोश हो गया है और यही कारण है कि काफी राजनीतिक दलाल मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ राजनेताओं के इशारे पर साजिशों का पिटारा खोलते रहते हैं लेकिन राजनीति के दबंग युवा मुख्यमंत्री स्वच्छ सरकार चलाकर अपने नाम का उत्तराखण्ड में झंडा बुलंद करते आ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जबसे सत्ता संभाली है तबसे उनकी रडार राजनीतिक दलालों पर हमेशा लगी रही है और उन्होंने पदभार ग्रहण करने के बाद से हमेशा यही संदेश दिया है कि अगर किसी ने किसी भी विभाग में राजनीतिक दलाल की एंट्री की आवाज सुनने को मिली तो विभाग के अफसरों को सीधा इसका जिम्मेदार ठहराया जायेगा। मुख्यमंत्री ने संकल्प ले रखा है कि उनके शासनकाल में एक आम इंसान को पारदर्शिता सरकार का आईना ही दिखाया जायेगा और किसी भी व्यक्ति को किसी सरकारी विभाग ने अपना काम कराने के लिए रिश्वत नहीं देनी होगी। सैनिक पुत्र पुष्कर सिंह धामी वचन के पक्के हैं और सभी को इस बात का इल्म है कि मुख्यमंत्री ने पारदर्शिता और स्वच्छता के साथ सरकार चलाने का संकल्प लिया हुआ है और वह एक आम इंसान की भांति अपने आपको राज्यवासियों के सामने रख रहे हैं।
मुख्यमंत्री के सख्त रूख का ही परिणाम है कि आज उन सरकारी महकमों में दलाल और राजनीतिक दलालों की आहट सुनने को नहीं मिलती जहां कुछ पूर्व सरकारों में इनका साम्राज्य हुआ करता था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की राजनीतिक सोच गंगाजल की तरह साफ मानी जाती है और यही कारण है कि उनके राज में भ्रष्टाचार और घोटालेबाजों का शोर कहीं पर भी सुनने को नहीं मिल रहा और न ही उन राजनीतिक दलालों की कहीं एंट्री दिखाई दे रही है जो कुछ पूर्व सरकारों में अपने आपको भौकाल समझते थे?