प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड में भाजपा सरकारों के कार्यकाल में हमेशा गणेश जोशी का राजनीतिक वजूद उफान पर देखने को मिलता रहा है और अब वह पुष्कर सरकार मंे कैबिनेट मंत्री के पद पर आसीन हैं और उन्हें सरकार में कद्दावर मंत्री के रूप में भी देखा जाता है। अब यह कद्दावर मंत्री आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में घिरे हुये नजर आ रहे हैं और भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री के लिए आने वाले चालीस दिन काफी निर्णायक रहंेगे क्योंकि धामी कैबिनेट को आठ अक्टूबर तक मंत्री जोशी पर आय से अधिक सम्पत्ति मामले में मुकदमा चलाने को लेकर अह्म फैसला लेना है। उत्तराखण्ड के गलियारों में अब हर तरफ एक ही शोर सुनने को मिल रहा है कि क्या धाकड़ धामी गणेश जोशी पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देंगे? मंत्री जहां इस मामले में संकट के दौर में है तो वहीं उन पर मुकदमा चलाने को लेकर धामी सरकार की भी अब अग्निपरीक्षा होनी तय है क्योंिक उन्हे कैबिनेट मंे यह फैसला लेना पडेगा कि वह मंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देगी या नहीं?
उत्तराखण्ड बनने के बाद से ही भाजपा नेता गणेश जोशी हमेशा राज्य के अन्दर एक अपना बडा राजनीतिक वजूद बनाये हुये हैं और मौजूदा दौर में वह धामी कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री के पद पर तैनात हैं। कैबिनेट मंत्री पद पर आसीन गणेश जोशी आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में इन दिनों बूरी तरह से घिर गये हैं और अब भाजपा सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के राजनीतिक भविष्य पर भी एक ग्रहण लगता हुआ नजर आ रहा है क्योंकि आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में उनके लिए आने वाले चालीस दिन काफी अह्म होंगे क्योंकि धामी कैबिनेट को आठ अक्टूबर तक मंत्री जोशी पर मुकदमा चलाने को लेकर अह्म फैसला लेना है।
चूंकि यह मामला विजिलेंस ने आठ जुलाई 2024 को मंत्री परिषद को भेजा था। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तय तीन महीने की अवधि के अन्दर उत्तराखण्ड कैबिनेट को मुकदमा चलाने की स्वीकृति के बाबत अह्म फैसला लेना है। विजिलेंस कोर्ट ने यह भी कहा है कि मंत्री परिषद उत्तराखण्ड द्वारा लिये गये निर्णय से इस न्यायालय को अवगत करायें। विजिलेंस कोर्ट ने भ्रष्टाचार से जुडे इस मामले की सुनवाई 19 अक्टूबर तय की है। विशेष न्यायधीश सर्तकता मनीष मिश्रा ने दो सितम्बर को जारी आदेश में पुलिस अधीक्षक सर्तकता की आख्या का उल्लेख करते हुए कहा है कि भारतीय संविधान के अनुसार मंत्री परिषद, कार्य पालिका की निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च संस्था है। ऐसे में यदि कोई मामला किसी लोक सेवक के सम्बन्ध मंे निर्णय हेतु कार्य पालिका की सर्वोच्च संस्था के समक्ष विचाराधीन हो, तो किसी न्यायालय को निर्धारित समयावधि से पूर्व कोई आदेश पारित करना न्यायसंगत नहीं होता है।
विद्वान जज ने कहा है कि यह सही है कि वर्तमान मामला धारा-17ए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अन्तर्गत विश्लेषित किया जाना है। परंतु यदि अब धारा-17ए से पूर्व-19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अर्न्तगत सर्वोच्च न्यायालय के डाक्टर सुब्रहामण्यम स्वामी डा0 मनमोहन सिंह व अन्य, एआईआर 0,2012 सुप्रीम कोर्ट, पेज-1185 के निर्णय का परिशीलन किया जाये तो सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त निर्णय में किसी भी अभियोजन स्वीकृति के लिए तीन माह की समयावधि नियत की है।
ऐसे में न्यायालय के मत में मामला मंत्री परिषद को भेजे जाने का पत्र आठ जुलाई 2024 जो पत्रावली पर कागज संख्या-8का/2 है, के अवलोकन में आठ जुलाई 2024 से तीन माह की समयावधि अर्थात आठ अक्टूबर 2024 तक इस मामले में मंत्री परिषद के निर्णय का इंतजार किया जाना न्यायोचित है। गौरतलब है कि 24/25 जुलाई को दून जिला प्रशासन ने अधिवक्ता विकेश नेगी पर गुण्डा एक्ट लगाकर उसे छह महीने के लिए जिला बदर कर दिया था लेकिन कमींश्नर विनय शंकर पांडे ने जिला बदर के आदेश को निरस्त कर दिया था। इधर आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में विजिलेंस ने मंत्री परिषद की अनुमति मांगकर मंत्री गणेश जोशी व भाजपा की धडकनें बढा दी हैं। न्यायालय के इस आदेश के बाद उत्तराखण्ड के अन्दर हर तरफ एक ही शोर सुनने को मिल रहा है कि क्या धाकड़ धामी गणेश जोशी पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देंगे? कैबिनेट मंत्री पर आय से अधिक मामले में घिर चुके गणेश जोशी पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने या न देने को लेकर अब पुष्कर सरकार की एक बडी अग्निपरीक्षा माना जा रहा है जिस पर राज्यवासियों की पैनी नजर लगी हुई है?