राजनीति के शहद हैं धामी

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड मे अधिकांश पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सरकार चलाने के लिए अपने आपको राज्य का बादशाह समझकर ही हकूमत चलाने मे अपनी शान दिखाई और उसी के चलते वह आवाम से हमेशा दूरी बनाकर चलने मे ही विश्वास दिखाते थे जिसके चलते आवाम व अधिकांश पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच कभी भी सीधा संवाद नहीं रहा। अधिकांश पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ रहने वाले कुछ अफसरों ने यह भ्रम फैला रखा था कि अगर मुख्यमंत्री आवाम से सीधा संवाद करेंगे तो उससे पूर्व मुख्यमंत्रियों का इकबाल कमजोर होगा और यही कारण है कि अधिकांश पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अपने कुछ अफसरों की सलाह मानकर सरकार चलाई और वह उस दौर मे आकर खडे हो गये थे जहां आवाम का कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों से उनकी कार्यशैली को लेकर बडा टकराव होता रहा और उसी के चलते कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अपने आपको सलतनत का बादशाह मानते हुए अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाम को कुचलने का जो कुचक्र चलाया उसकी गूंज उत्तराखण्ड से लेकर देशभर मे गूंजी और उसी के चलते आवाम की नजरों मे वह विलेन बनते चले गये? वहीं उत्तराखण्ड की सत्ता जबसे युवा मुख्यमंत्री ने संभाली है तो उन्होंने अपनी किचन टीम मे ऐसे अफसरों की तैनाती की जो आवाम का दिल पढने मे हमेशा माहिर रहे हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री को आवाम के बीच हमेशा जनसेवक के रूप मे लाकर खडा किया तो उसी का परिणाम है कि आज उत्तराखण्ड की जनता के दिलों में मुख्यमंत्री राज करने लगे हैं और तो और अब राज्य की जनता मुख्यमंत्री को राजनीति का शहद मानने लगी है और उनका कहना है कि जहां यह शहद होता है वहां अपने आप इंसान रूपी मधुमक्खियां बनकर लोग उनके साथ जुडते चले जा रहे हैं जिससे आज हर तरफ मुख्यमंत्री का राजनीतिक रूतबा बुलंदियां छूने लगा है।
उत्तराखण्ड जब उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो आंदोलनकारियों के मन मे एक बडा विश्वास था कि उनके अपनों ने राज्य बनाने के लिए जो अपनी शहादत दी थी वह जायज नहीं जायेगी। आंदोलनकारियों ने अपनी उम्मीदों का उत्तराखण्ड बनाने की चाहत पाली और उसी के चलते जब राज्य अस्तित्व मे आया तो उसके बाद कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सत्ता पर आसीन होकर अपने आपको बादशाह समझने की भूल करनी शुरू कर दी क्योंकि उनके साथ रहने वाले कुछ अफसरों ने उन्हें यही ज्ञान बांटा कि वह उत्तराखण्ड सलतनत के बादशाह हैं और बादशाह को हमेशा जनता से सीधा संवाद नहीं करना चाहिए? उत्तराखण्ड के कुछ भ्रष्ट अफसरों ने भ्रष्टाचार का खेल खेलने के लिए कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों की आंखो पर ऐसी पट्टी डाली थी कि वह सही और गलत मे अंतर समझना ही भूल गये थे क्योंकि वह कुछ अफसरों के मोहजाल मे ऐसे फंस गये थे कि वह उनके कहने पर ही सत्ता चलाने के लिए आगे बढते चले गये थे? कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों को हमेशा अपनी गद्दी जाने का भय बना रहता था और उसी के चलते वह आवाम के बीच होने वाली कोई भी आलोचना बर्दाश्त करने को तैयार नहीं होते थे और जो भी सरकार मे चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करता था तो कुछ डरे सहमे पूर्व मुख्यमंत्री उस आवाज को हिटरशाही अंदाज मे कुचलने के लिए आगे आ जाते थे। चंद पूर्व मुख्यमंत्रियों ने हिटलरशाही का जो तांडव किया था उसी के चलते आवाम व कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच हमेशा एक द्वंद युद्ध चलता था और उसी के चलते उनमे हमेशा दूरी बनी रहती थी और उसी के चलते उनमे टकराव की स्थिति पैदा होती थी?
उत्तराखण्ड की कमान जब पुष्कर सिंह धामी को मिली थी तो किसी को इस बात का आभास नहीं था कि वह आवाम की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे लेकिन उन्होंने सरकार चलाने के लिए अपने आपको राज्य का बादशाह समझने की बजाए जनसेवक बनकर आवाम के दिलों को जीतने का जो हुनर दिखाया उसके चलते तो राज्य की जनता मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सादगी को देखकर हमेशा उनकी तारीफो के पुल बांधने के मिशन मे आगे बढती चली गई। आवाम के सामने हमेशा मुख्यमंत्री ने अपना फलावर रूप रखा और बच्चे से लेकर बडे तक को उन्होंने अपना फलावर रूप दिखाकर उनके दिलों मे जो एक बडी आस पैदा की कि वह हमेशा उनके सुख दुख मे खडे रहेंगे तो उसके चलते आवाम मुख्यमंत्री के साथ शहद के रूप मे चिपकने लगे और आज आलम यह है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जहां पर भी कार्यक्रम करने के लिए आते हैं तो वहां इंसान रूपी मधुमक्खियों की तरह शहद बन चुके मुख्यमंत्री के साथ चिपकने के लिए आगे बढती जा रही है।
मुख्यमंत्री आज उत्तराखण्ड के अन्दर एक नया इतिहास रचते हुए नजर आ रहे हैं और यह इतिहास उन्होंने आवाम का दिल जीतने मे लिखा है यही कारण है कि आज दिल्ली मे भाजपा के बडे-बडे दिग्गज नेता भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की राजनीति मे तेजी के साथ बढते रूतबे को देखकर उनके कायल हो रखे हैं।

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