देहरादून(संवाददाता)। अपनी अनेक मांगों के समाधान के लिए उपनल कर्मचारियों का कचहरी स्थित शहीद स्थल पर धरना जारी रहा और इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपना समर्थन दिया। इस अवसर पर उपनल कर्मचारियों ने जोरदार नारेबाजी के बीच प्रदर्शन किया। इस अवसर पर उपनल कर्मचारियों ने कहा कि उपनल गठन के उपरांत से हजारों उपनल कर्मचारी दस से बीस वर्षों से अपने जीवन का ऊर्जावान समय अति न्यून वेतन में राज्य के विभिन्न विभागों, निगमों इत्यादि में देने के बाद भी जब हम उपनल कर्मचारियों में से अधिकतर कर्मचारियों की उम्र 45 से 5० वर्ष होने को है आतिथि तक न तो उपनल कर्मचारियों को सम्मानजनक वेतन दिया जा रहा है और न कोई सुरक्षित भविष्य हेतु नियमावली बनाई गयी है।
उपनल कर्मचारियों ने कहा कि समय-समय पर विभिन्न विभागों द्वारा 1० से 15 वर्ष कार्य कर चुके उपनल कर्मचारियों को अकारण नौकरी से हटा दिया जा रहा है और जिनमें से कई उपनल कर्मचारियों द्वारा अपने माता और पत्नी के आभूषण बेच कर न्यायालयों के अधिवक्ताओं की फीस देकर अपनी नौकरी बचाई है, मरता क्या न करता एक तो अति न्यून वेतन उसके उपर से उच्चाधिकारियों के शोषणात्मक आदेशों से अपने आत्म सम्मान को बचाने और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए उपनल कर्मचारी को मजबूरन यह सब करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि किसी भी स्तर पर उपनल कर्मचारियों की सुनवाई करने वाला राज्य में कोई नहीं है। राज्य सरकार द्वारा राज्य गठन के उपरान्त समय समय पर हजारों संविदा इत्यादि के कर्मचारियों को नियमावली बनाकर नियमित किया गया लेकिन जब-जब भी नियमित करने हेतु नियमावली बनाई गयी किसी में भी उपनल कर्मचारियों को सम्मिलित नहीं किया गया, जबकि उपनल कर्मचारियों को भी उतना ही समय विभागों में कार्य करते हुए हो चुका है और उपनल कर्मचारी भी वही सब कार्यों को पूर्ण निष्ठा के साथ विभागों, निगमों में सम्पादित कर रहे है जो कि संविदा, नियत वेतन,दैनिक वेतन इत्यादि के कर्मचारियों द्वारा किये जा रहे है।
उनका कहना है कि वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में राज्य के विभिन्न विभागों में दैनिक वेतन, नियत वेतन, अंशकालिक, संविदा कार्मिकों की सेवायें विनियमित किये जाने हेतु नियमावली बनाये जाने की कार्यवाही गतिमान है। उनका कहना है कि उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका कुन्दन सिंह बनाम उत्तराखण्ड राज्य में उपनल कर्मचारियों को नियमित किये जाने के आदेश दिये गये थे, किन्तु राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के उक्त आदेश का अनुपालन न कर, आदेश के विरूद्व सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अपील योजित कर, उक्त विशेष अपील की पैरवी हेतु नामित अधिवक्ताओं की फीस पर अभी तक लाखों रूपये का खर्च किये जा रहे है। उनका कहना है कि महाधिवक्ता, उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय, नैनीताल के पत्र 26 अगस्त 2०23 द्वारा भी राज्याधीन आउटसोर्स के माध्यम से नियुक्त अस्थायी कार्मिकों के लिये विनियमतिकरण के लिये नीति बनाये जाने का परामर्श मुख्य सचिव, उत्तराखण्ड सरकार को दिया गया है। उनका कहना है कि उच्च न्यायालय की डबल बैंच द्वारा भी 12 जून 2०24 को उच्चतम न्यायालय में योजित विचाराधीन विशेष अपील के निर्णय होने तक उपनल कर्मचारियों से नियमित रूप से कार्य कराये जाने के निर्देश दिये गये है, फिर भी कई विभागों (राज्य कर, कृृषि इत्यादि) में उपनल कार्मिकों की सेवाओं को बाधित रखा हुआ है एवं बाधित किया जा रहा है।
उनका कहना है कि उपनल कर्मचारियों की पीड़ा को महसूस करते हुए राज्य के विभिन्न विभागों में दैनिक वेतन, नियत वेतन, अंशकालिक, संविदा कार्मिकों को विनियमित किये जाने वाली प्रस्तावित नियमावली में उपनल कार्मिकों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। लंबे संघर्ष के बाद भी जब उपनल कर्मचारियों की कोई सुध नही ले रहा है ऐसे में उपनल कर्मचारी अत्यंत आक्रोशित है आक्रोश के चलते आज उपनल कर्मचारियों उत्तराखंड शाहिद स्थल पर आकर ये बताना चाहते है कि जिस उत्तराखंड की परिकल्पना उन्होंने की थी वो कहीं से कहीं तक साकार होते हुवे नही दिखाई दे रही है। उनका कहना है कि ऐसे में हम अपने माननीयों और अपने उच्चाधिकारियों को यहाँ से आगाह करना चाहते है कि अभी समय है उपनल कर्मचारियों की व्यथा को समझिए कहीं ऐसा न हो कि आपके समझने में देर न हो जाय। इस अवसर पर धरने में विनोद गोदियाल, प्रमोद गुसाईं, विनय प्रसाद, मीना रौथान, बिमला, नरेश शाह, जगवेन्द्र पंवार, देवेंद्र रतूड़ी, महेश भट्ट, अजयदेव, विवेक भट्ट, अनिल सिंह, योगेश बडोनी, छतर सिंह बिष्ट, सुनीता, उर्मिला, सुनील उनियाल सोबन सिंह, कौशल्या, हिमानी, पूनम पंत आदि उपस्थित रहे।