भाजपा के मजबूत चार कंधे भण्डारी की नैय्या नहीं करा सके पार?

0
21

आवाम पर थोपा उपचुनाव और बाहरी प्रत्याशी बना हार की मुख्य वजह!
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। तीन साल से धाकड़ अंदाज में सरकार चला रहे मुख्यमंत्री से आवाम खुलकर अपनी आस्था दिखा रहा है और मातृशक्ति ने सादगी से सरकार चलाने वाले जन नायक को उत्तराखण्ड का रक्षक मानकर उन पर अभेद भरोसा दिखा रखा है और यही कारण है कि राज्य की जनता ने लोकसभा चुनाव मे भाजपा को प्रचंड जीत देने के लिए अपने आपको आगे खडा किया था। वहीं आवाम पर थोपा उपचुनाव और बाहरी प्रत्याशी को लेकर आवाम मे खासी नाराजगी दिखी और उसी नाराजगी के चलते भाजपा को इस चुनावी रण मे हार का सामना करना पडा? हैरानी वाली बात है कि बद्रीनाथ सीट पर चुनाव लडने वाले राजेंद्र भण्डारी को जिताने की जिम्मेदारी भाजपा के चार मजबूत कंधो पर थी लेकिन उसके बावजूद भी वह भण्डारी की चुनावी नैय्या को पार नहीं करा पाये और यह हार भाजपा को एक बडा दर्द दे गई?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के तीन साल के कार्यकाल मे भाजपा ने विधानसभा चुनाव मे प्रचंड जीत हासिल की और उसके बाद लोकसभा चुनाव मे मुख्यमंत्री ने पांचो सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को बडी जीत दिलाकर विपक्ष को चुनावी रण मे धडाम कर दिया था। लोकसभा चुनाव से पूर्व मार्च मे बद्रीनाथ से कांग्रेसी विधायक राजेंद्र सिंह भण्डारी को भाजपा मे शामिल कराने का एक गोपनीय ऑपरेशन चला और इस ऑपरेशन की आखिरी समय तक भनक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट को भी नहीं लग पाई थी? राजेंद्र भण्डारी को दिल्ली मे भाजपा ज्वाइंन कराई गई थी और उनकी इस ज्वाइंनिंग से बद्रीनाथ मे भाजपा के काफी नेताओं और कार्यकर्ताओं मे काफी नाराजगी कि बातें सामने आने लगी और यह बात उठी कि जो राजेंद्र सिंह भण्डारी एक लम्बे दशक से भाजपा को हर मोर्चे पर कोसते थे उन्हें कैसे भाजपा मे एंट्री कराई गई? जनता पर थोपा गया बद्रीनाथ उपचुनाव आवाम के मन मे एक बडी नाराजगी पैदा कर गया था और उपचुनाव मे राजेंद्र सिंह भण्डारी को चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी भाजपा के चार मजबूत कंधों पर रखी गई थी। सवा माह पूर्व पौडी लोकसभा सीट से सांसद बने अनिल बलूनी को भण्डारी की जीत आसान करने के लिए उन्हें संरक्षक की भूमिका मे आगे किया गया? वहीं बद्रीनाथ से चुनाव हारने वाले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट को भाजपा हाईकमान ने राज्यसभा भेजा लेकिन वह भण्डारी को चुनाव जितवाकर भाजपा हाईकमान को रिर्टन गिफ्ट लौटाने मे धडाम हो गये? वहीं बद्रीनाथ चुनाव की कमान संभाले कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत पर भरोसा किया गया था कि वह राजेंद्र सिंह भण्डारी को उपचुनाव मे जितवाने मे सफलता की सीढी चढेंगे क्योंकि लोकसभा चुनाव में अनिल बलूनी बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर आठ हजार वोट से आगे रहे थे लेकिन ऐसा क्या हुआ कि मात्र सवा महीने मे ही अनिल बलूनी राजेंद्र सिंह भण्डारी को चुनाव नहीं जितवा पाये और वहां से भण्डारी को पांच हजार मतों से हार का सामना करना पडा। बद्रीनाथ मे भण्डारी को जीत दिलाने की बडी जिम्मेदारी वहां के भाजपा संगठन की थी जिन्होंने लोकसभा चुनाव मे पार्टी सांसद अनिल बलूनी को आठ हजार वोटो से बद्रीनाथ मे बढ़त दिलाई थी लेकिन वह भी भण्डारी की नैय्या को पार नहीं लगा पाये इसके साथ ही राज्य के कई मंत्री भी राजेंद्र सिंह भण्डारी के पक्ष मे प्रचार करने के लिए वहां पहुंचे थे लेकिन किसी की भी धमक वहां नहीं चल पाई और बद्रीनाथ जैसी महत्वपूर्ण सीट पर हार मिल गई? वहीं पैराशूट प्रत्याशी के रूप मे मंगलौर सीट पर करतार सिंह भडाना को चुनाव मैदान मे उतारा गया और उनके चुनाव मैदान मे उतरने से भाजपा के अन्दर ही एक बडी हलचल मची हुई थी? थोपे गये उपचुनाव मे राजेंद्र सिंह भण्डारी व करतार सिंह भडाना को आखिरकार चुनाव मैदान मे उतारना दिल्ली के कुछ भाजपा नेताओं को कहीं न कहीं अब अपने फैसले पर चिंता करनी पड रही होगी? इन दोनो चुनाव मे कहीं न कहीं पार्टी प्रत्याशियांे का चयन भाजपा के अन्दर ही एक बडी नाराजगी पैदा किये हुये था और उसी के चलते भाजपा प्रत्याशियों की हार से भाजपा हाईकमान को भी यह अब मंथन करना पडेगा कि ऐसे फैसले लेने से पहले वह उत्तराखण्ड सरकार के मुखिया और प्रदेश संगठन से मंथन करके ही कोई कदम आगे बढायें?

धामी ने तो लगाई थी पूरी ताकत…
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उपचुनाव मे पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी और बद्रीनाथ मे थोपे गये उपचुनाव को लेकर वह आवाम की भावनायें पहचान चुके थे कि उनमें राजेंद्र ंिसह भण्डारी को लेकर काफी नाराजगी पनप रही है? आवाम की भावनाओं को भापने के बाद मुख्यमंत्री ने खुद दो दिन तक बद्रीनाथ मे डेरा डाला और वह आवाम के बीच जाकर कमल खिलाने के लिए एक बडा संदेश देने मे जुटे रहे और मातृशक्ति को भी उन्होंने इस चुनाव मे कमल खिलाने का आग्रह किया था। आवाम ने मुख्यमंत्री की भावनाओं की खूब कदर करी लेकिन दल-बदल करने वाले राजेंद्र सिंह भण्डारी की राजनीति को लेकर उनमे बडी नाराजगी थी और उनके द्वारा जो कथित रूप से ब्राहमणो को लेकर अपना कथन दिया गया उससे वहां ब्राहमण समाज मे काफी नाराजगी थी। आवाम मे अगर मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई नाराजगी होती तो वह पौडी सीट पर भाजपा प्रत्याशी को बद्रीनाथ मे आठ हजार की बढ़त दिलाने के लिए आगे न आते लेकिन राजेंद्र भण्डारी को लेकर पनपी नाराजगी ही उनकी हार का मुख्य कारण बनी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तो मंगलौर उपचुनाव मे अपनी धमक दिखाकर कांग्रेस व बसपा की नींद उडाकर रख दी क्योंकि जिस सीट पर चौबीस साल से विपक्ष का कब्जा रहा वहां मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने अपनी चाणक्य राजनीति से पैराशूट प्रत्याशी के रूप मे चुनाव लडने वाले करतार सिंह भडाना को जीत की बाउण्ड्री लाइन पर लाकर खडा कर दिया और यह हार हारकर भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलौर चुनाव मे अपनी धमक से सबको चौका दिया। मुख्यमंत्री ने मंगलौर सीट पर चुनाव के दौरान राहुल गांधी के कथित हिंदू हिंसक होने के बयान को आवाम के बीच आक्रामकता से रखा और उन्होंने वहां सब हिंदुओं को एकसाथ लाने का जो हुनर दिखाया उसी के चलते मंगलौर मे धामी की धमक देखने को मिली।

पहली अग्निपरीक्षा मे ही फेल हो गये बलूनी!
पौडी लोकसभा सीट पर बडी जीत हासिल करने वाले सांसद अनिल बलूनी पर उम्मीदें थी कि वह कांग्रेस से भाजपा मे उनके लिए आये विधायक राजेंद्र सिंह भण्डारी को उपचुनाव मे एक बडी जीत दिलाकर अपने राजनीतिक इकबाल से पार्टी को रूबरू करायेंगे? हैरानी वाली बात है कि लोकसभा सीट पर हुये चुनाव मे बद्रीनाथ मे अनिल बलूनी आठ हजार से बढ़त हासिल किये थे लेकिन चंद समय मे ही हुये उपचुनाव मे उसी बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर राजेंद्र सिंह भण्डारी को पांच हजार मतो से हार मिली तो यह सवाल खडे हुये कि पहली अग्निपरीक्षा मे ही अनिल बलूनी कैसे फेल हो गये?

LEAVE A REPLY