कांग्रेसी नेताओं की एंट्री से भाजपा मे तूफान?
चुनावी गणित से तय होगा दल-बदल वाले नेताओं का भविष्य!
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड मे भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार दूसरी बार बनी है और राज्य के मुख्यमंत्री धाकड़ अंदाज से सत्ता चला रहे हैं। उत्तराखण्डवासियों को मुख्यमंत्री की स्वच्छ राजनीति खूब रास आ रही है तथा उन्हें इस बात का इल्म हो चुका है कि मुख्यमंत्री विकास पुरूष बनकर उनके सामने खडे है। मुख्यमंत्री ने सवा दो साल से राजनीतिक पिच पर ऑल रॉउडर बनकर राज्य के विकास के लिए हर बॉल पर चौके-छक्के लगा रखे हैं उसे देखकर आखिर पार्टी के वो कौन चेहरे हैं जो मुख्यमंत्री की देशभर मे दिख रही धमक से बेचैन हैं? वहीं लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के कुछ राजनेताओं ने जिस तरह से कांग्रेस के काफी नेताओं को एक के बाद एक भाजपा मे एंट्री कराकर उन्हें गले से लगाया वह शायद भाजपा के उन राजनेताओं और कार्यकर्ताओं मे एक बडी बेचैनी पैदा कर दिया जो एक लम्बे युग से भाजपा मे डंडे-झंडे उठाकर पार्टी हित मे रात-दिन काम कर रहे हैं। भाजपा के कुछ नेताओं ने चुनाव से पूर्व कांग्रेस के काफी नेताओं को पार्टी मे एंट्री कराकर कहीं न कहीं यह दिखाने की कोशिश की चुनाव मे ये सभी नेता पार्टी प्रत्याशियों के लिए वरदान साबित होंगे लेकिन जिस तरह से चुनाव मे कम मतदान हुआ है उसको लेकर भाजपा के अन्दर एक चिंतन मनन का दौर जरूर चल उठा होगा कि आखिरकार ऐसा क्यों हुआ? कांग्रेसी नेताओं की बडे पैमाने पर भाजपा मे हुई एंट्री से पार्टी के अन्दर खामोशी के साथ एक तूफान मचा हुआ नजर आ रहा है? अब देखने वाली बात होगी कि जब चार जून को चुनाव परिणाम सामने आयेंगे तो उससे यह राज खुल जायेगा कि भाजपा के अन्दर जिन कांग्रेसी नेताओं की एंट्री कराई गई वह पार्टी प्रत्याशियों के लिए वरदान बनी या अभिशाप?
उत्तराखण्ड का इतिहास रहा है कि जब-जब पार्टी बडे राजनेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज करने के लिए अपने आपको पार्टी से बडा समझने की भूल की तब-तब पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पडा था? भगत सिंह कोश्यारी जब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री थे तो उनके कार्यकाल मे हुये विधानसभा चुनाव मे पार्टी के ही काफी राजनेताओं ने भीतरघात का चक्रव्यूह रचा था और उसके चलते भाजपा सत्ता मे नहीं आ पाई थी? वहीं उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूरी के कार्यकाल मे सबकुछ बेहतर था और कुछ राजनेताओं की इच्छा ऐसी उछाल मारी कि जब खण्डूरी के नेतृत्व मे विधानसभा चुनाव हुये तो पार्टी को तो बहुमत से मात्र चंद सीट कम मिली लेकिन जिन्हांेने पार्टी नेताओं को विधायक बनाया था उनके खिलाफ कोटद्वार मे ऐसा भीतरघात हुआ था कि चुनाव मे उन्हें ही हार का सामना करना पडा था। उत्तराखण्ड मे चार साल तक पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सत्ता चलाई और जब राज्य से यह आवाज उठने लगी कि अगर उनके नेतृत्व मे विधानसभा चुनाव हुये तो पार्टी के लिए जीत हासिल करना चुनौती हो जायेगा? इसीलिए पुष्कर सिंह धामी को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने पार्टी नेताआंे और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चुनाव लडा और उनके बल पर मुख्यमंत्री ने एक बार फिर राज्य के अन्दर भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार बना दी थी।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पिछले सवा दो साल से धाकड अंदाज मे सत्ता चला रहे हैं और उनकी स्वच्छ सत्ता देखकर उत्तराखण्डवासी उनके कायल हो चुके हैं तो वहीं विपक्ष के काफी नेताओं को यह दिखाई देने लगा कि मुख्यमंत्री की स्वच्छ राजनीति और विकास की नई उडान से उनका राजनीतिक इकबाल जिस तरह से बुलंद हो गया है उससे उनका अपने दल मे शायद राजनीतिक भविष्य सुरक्षित नहीं रह गया है? हैरानी वाली बात है कि उत्तराखण्ड का आवाम मुख्यमंत्री पर अभेद विश्वास कर रहा है लेकिन लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा के कुछ राजनेताओं ने एकाएक जिस तरह से कांग्रेस के काफी नेताओं को भाजपा के अन्दर लाकर उन्हें गले से लगाने का जो काम किया वह शायद भाजपा के काफी नेताओं और कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया? भाजपा के अन्दर कांग्रेसी नेताओं की एंट्री से पार्टी के अन्दरखाने एक भूचाल सा मचा हुआ है क्योंकि वर्षों से पार्टी के अन्दर जो राजनेता जो अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं उन्हें कहीं न कहीं यह डर सताने लगा कि जिस तरह से पहले कांग्रेस के काफी नेताओं ने भाजपा मे एंट्री कराकर विधानसभा चुनाव लडकर सरकार मे अपने आपको मंत्री बनाने मे सफलता हासिल की कहीं कांग्रेस से भाजपा मे आये इन नेताओं का भी राजनीतिक भविष्य उसी तरह से पार्टी के कुछ नेता उज्जवल न कर दें जैसा पूर्व मे हुआ था?