आखिरकार उत्तराखण्ड को मिल ही गया शेरदिल डीजीपी

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। परंपरा कोई भी हो, ऐसा समझा जाता है कि एक न एक दिन उसे बदलना ही होता है। कुछ परंपराओं में बदलाव होना समाज के हित में होता है, तो कुछ का शायद नहीं भी होता? ऐसी ही एक परंपरा थी जिसका अंत कुछ वर्ष पूर्व हुआ था और उसका अंत समाज के हित में हुआ था। इस परंपरा का अंत करने वाला एक जाबांज शेरदिल पुलिस अधिकारी था। एक समय था जब उत्तराखण्ड की राजधानी दून के डीएवी महाविद्यालय में जब छात्रसंघ चुनाव होते थे तो चुनाव परिणाम के बाद जो भी पार्टी जीतती थी, उसके समर्थक बड़े हो हल्ले से शहर में रैली निकालते थे। इस रैली के दौरान जीती हुई पार्टी के समर्थक बहुत कुछ ऐसा कर गुजरते थे जिससे समाज में डर का माहौल बन जाता था।
दून के इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हैं जिसमें कि छात्रसंघ चुनाव में जीतने वाली पार्टी के समर्थकों की करतूतों का वर्णन है। उस दौरान राजधानी दून में एक जाबांज शेरदिल पुलिस अधिकारी की तैनाती हुई थी। पुलिस अधिकारी के संज्ञान में जब यह बात आई कि डीएवी में छात्रसंघ चुनाव के परिणाम आने वाले है और उन्हें पता चला कि चुनाव परिणाम आने के बाद क्या-क्या होता है तो पुलिस अधिकारी ने खुद मोर्चे को संभालते हुए करनपुर चौक लठ के साथ डेरा जमा लिया। डेरा जमाने के बाद उन्होंने डीएवी के छात्रों को हिदायत दी की कोई भी पार्टी समर्थक तय परिधि को नहीं लांघेगा और यदि कोई ऐसा करता हुआ पाया जाता है तो वह अपने हश्र का खुद जिम्मेदार होगा। इन पुलिस अधिकारी की उस हुंकार का परिणाम यह निकला कि वर्तमान समय तक में भी छात्रसंघ चुनाव के बाद कोई भी उस परिधि को लांघने की जुर्रत नहीं करता। यह पुलिस अधिकारी और कोई नहीं बल्कि उत्तराखण्ड के दिलेर आईपीएस अभिनव कुमार है। एक अर्से से उत्तराखण्ड को एक मजबूत और निर्विवादित पुलिस महानिदेशक की तलाश थी। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने आवास में ईगास पर्व मनाते हुए जहां टनल से निकले श्रमिकों के साथ पर्व मनाया वहीं उन्होंने उत्तराखण्ड की जनता को अभिनव कुमार के रूप में एक शेरदिल डीजीपी देकर राज्यवासियों को एक बडा तोहफा दे दिया।

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