त्रिवेन्द्र सिंह रावत के पूर्व मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट के खिलाफ आक्रोश

0
72

सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रहे पूर्व सलाहकार
तो क्या तीरथ रावत सरकार को बदनाम करने की हो रही साजिश?
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। हैरतअंगेज बात है कि उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के पूर्व मीडिया सलाहकार रहे रमेश भट्ट को जबसे नई सरकार के मुखिया तीरथ सिंह रावत ने सरकार से बाहर निकालकर फेंका है तबसे सोशल मीडिया पर उनका एकाएक पत्रकार प्रेम उमडता हुआ दिखाई दे रहा है और गजब बात तो यह है कि वह नई सरकार के मुखिया को निशाने पर लेकर सवाल उठा रहे हैं कि उत्तरखण्ड के जंगलांे में लगी आग कब बुझेगी और यहां तक राग अलाप रहे हैं कि देवभूमि में धधकते जंगल किसका कसूर है? रमेश भट्ट ने जैसे ही सोशल मीडिया पर कब बुझेगी आग को लेकर अपना प्रवचन देना शुरू किया तो उसके बाद सोशल मीडिया पर वह तेजी से ट्रोल होने लगे और उनके खिलाफ एक बडा आक्रोश भी देखने को मिल रहा है इसके साथ ही यह सवाल भी दागे जा रहे हैं कि चार साल तक तो वह त्रिवेन्द्र सिंह रावत के मीडिया सलाहकार रहे थे तो उस समय क्या जंगलों में आग नहीं लगती थी? पत्रकार उमेश कुमार का साफ आरोप है कि उत्तराखण्ड के नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को राज्य में बदनाम करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री का पूर्व मीडिया सलाहकार सोशल मीडिया पर आग उगल रहा है जिससे यह साफ दिखाई दे रहा है कि नये निजाम को बदनाम करने की किस तरह से ऐसे मुद्दे को लेकर साजिश की जा रही है जबकि नये मुख्यमंत्री को पद संभाले मात्र चंद समय ही हुआ है तो उन्हें वनों में लगी आग का किस तरह से कोई दोषी बना सकता है? उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अगर चार साल तक वनों में लगने वाली आग को लेकर कोई बडा मंथन किया होता तो आज पहाडों मंे जंगल धूं-धूं नहीं जल रहे होते। आशंका यह भी उठ रही है कि कहीं राज्य के नये ईमानदार व स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री को बदनाम करने के लिए कुछ साजिशकर्ताओं ने जंगलों में आग फैलाने का बडा प्रपंच तो नहीं रच दिया है जिससे कि नये मुख्यमंत्री को साजिश के तहत निशाने पर रखा जा सके?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड के नये मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत ने जबसे राज्य की कमान संभाली है वह एक के बाद एक ऐसे फैसले कर रहे हैं जिससे राज्य की जनता गद्गद् नजर आ रही है और वह यह सवाल भी उठा रही है कि आखिरकार भाजपा हाईकमान ने चार साल तक क्यों त्रिवेन्द्र रावत के हाथों में सत्ता सौंपकर रखी जिसका खामियाजा अब उन्हें भुगतना पड रहा है? नये मुख्यमंत्री ने त्रिवेन्द्र सिंह रावत के अधिकांश फैसलों को पलटते हुए उनकी टीम के सदस्यों को सरकार से बाहर करने का जो फैसला लिया उसका राज्य के अन्दर बडा सम्मान हो रहा है और यह भी कहा जा रहा है कि अगर तीरथ ंिसह रावत को एक वर्ष पूर्व उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनाया होता तो अब तक राज्य की तस्वीर अलग ही देखने को मिलती। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने आवाम व मीडिया का दिल जीतने के लिए जिस तरह से अपने कदम आगे बढा रखे हैं उससे वह भाजपा हाईकमान की आंखों के भी तारे बनते जा रहे हैं और यह भी बहस शुरू हो गई है कि जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य में तानाशाही की तरह सरकार चलाई है उससे राज्यवासियों के मन में भाजपा के प्रति एक बडी नाराजगी है और नये मुख्यमंत्री जनता के मन में सरकार को लेकर पैदा हो रखी इस नाराजगी को कैसे कम समय में दूर करेंगे यह देखने वाली बात होगी। गजब बात तो यह है कि उत्तराखण्ड के अन्दर हर साल जंगलों में आग लगती है और पूर्व मुख्यमंत्री ने ऐसा कोई खाका तैयार नहीं किया था जिससे कि जंगलों में लगने वाली आग को काबू करने पर कोई रणनीति बन सके। अब राज्य में त्रिवेन्द्र की सत्ता चली गई तो उनके पूर्व मीडिया सलाहकार सोशल मीडिया पर आकर कहीं न कहीं सरकार के नये मुखिया को निशाने पर लेने का प्रपंच रच रहे हैं? गजब बात तो यह है कि जिस मीडिया सलाहकार को त्रिवेन्द्र रावत सरकार में चार साल से जंगलों में लगने वाली आग कभी दिखाई नहीं दी वह अब यह सवाल उठा रहे हैं कि जंगलों में लगने वाली आग कब बुझेगी और यह भी सवाल दाग रहे हैं कि देवभूमि में धधकते जंगल किसका कसूर? इतना ही नहीं पूर्व सलाहकार यह भी आवाज उठा रहे हैं कि वन सम्पदा को बचाने के लिए सरकार कितनी तैयार है। सवाल उठता है कि जिस राज्य के मुख्यमंत्री को मात्र एक माह भी अपने कार्यकाल का पूरा नहीं हुआ उनसे अगर त्रिवेन्द्र रावत का पूर्व मीडिया सलाहकार यह सवाल पूछ रहा है कि जंगलों में लगी आग कब बुझेगी तो उन्हें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि चंद दिनों में सत्ता सम्भालने वाले नये मुख्यमंत्री के पास क्या कोई ऐसा जादुई चिराग है जिसे घिसते ही वह राज्य के जंगलों में लगी आग को बुझा देंगे? पूर्व मीडिया सलाहकार के इस सवाल पर सोशल मीडिया में उनकी जमकर खिचाई हो रही है और यह सवाल उठ रहे हैं कि जब वह चार साल तक त्रिवेन्द्र रावत सरकार में मीडिया सलाहकार थे तो क्या चार सालों में राज्य के जंगलों में लगी आग उन्हें कभी दिखाई नहीं दी? पूर्व मीडिया सलाहकार ने जंगलों में लगी आग को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की है उससे साफ नजर आ रहा है कि वह उत्तराखण्ड के ईमानदार छवि के मुख्यमंत्री को राज्य की जनता के सामने कमजोर करने का खेल खेल रहे हैं?

LEAVE A REPLY