प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड में चार साल तक सत्ता चलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिह रावत अपने कार्यकाल में राज्यवासियों का दिल नहीं जीत पाये और जिस तरह से उन्होंने समूचे राज्य में एक तानाशाह की तरह सत्ता चलाने का जो काम किया उसी का परिणाम है कि गढवाल से लेकर कुमांऊ तक के कुछ जिलों में जनता जीरो टॉलरेंस की सरकार से नाराज चली आ रही है? उत्तराखण्ड के अन्दर विकास का पहिया जिस तरह से जाम हुआ और पहाडों में सडक, स्वास्थ्य, शिक्षा का स्तर धडाम रहा उससे पहाड की जनता में भी पूर्व मुख्यमंत्री के शासनकाल को लेकर बेहद नाराजगी दिखाई दे रही है? अब जबकी सल्ट में विधानसभा का उपचुनाव होना है तो वहां की सीट पर होने वाला चुनाव भाजपा के लिए काफी घातक बना हुआ है? सल्ट की जनता उपचुनाव में वंशवाद को स्वीकार करेगी या नहीं यह चुनाव के परिणाम से साफ हो जायेगा लेकिन जिस तरह से सल्ट से छनकर खबरें राज्य के गलियारों में गूंज रही हैं उससे यह आशंका भी पनप रही है कि कहीं त्रिवेन्द्र के बिछाये कांटों में सल्ट की सीट न फंस जाये? यही कारण है कि भाजपा ने इस उपचुनाव को जीतने के लिए जहां पूरी ताकत लगा दी है वहीं कांग्रेस भी इस चुनाव को जीतने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रही है। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री ने कुमांऊ के अन्दर ऐसा कोई विकास नहीं किया जिससे कि आवाम सरकार से खुश चली आ रही हो? भाजपा के अन्दर ही यह बहस चल रही है कि सल्ट विधानसभा सीट पर होने वाला चुनाव पार्टी के लिए काफी मुश्किल बना हुआ है और सल्ट की सीट पर होने वाले चुनाव में आवाम भाजपा के इमोशनल कार्ड पर अपनी मोहर लगायेगी या फिर इस बार उपचुनाव का नतीजा कुछ और ही गुल खिलायेगा इस पर समूचे राज्य की नजर लगी हुई है?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड में जब 2017 में भाजपा की सरकार प्रचंड बहुमत में आई थी तो ऐसी आशा थी कि समूचे राज्य का विकास होगा। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ंिसह रावत ने भी ऐलान किया था कि राज्य को विकास की ऊंचाईयों तक ले जायेंगे लेकिन उन्होंने अपने शासनकाल में सिर्फ कुछ जनपदों पर ही अपना फोकस रखा और राज्य के अधिकांश पहाडों में जो विकास का पहिया तेजी से आगे बढना था वह हमेशा कछुवे की चाल ही चलता हुआ नजर आया? पहाड के अधिकांश जनपदों में प्रचंड बहुमत की सरकार सडक, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत समस्याओं पर भी आवाम की नजरों में खरी नहीं उतर पाई जिसके चलते पहाड की अधिकांश जनता पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के शासन से बेहद नाराज चली आ रही थी। पहाडों से पलायन रोकने का पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा तो बहुत किया था लेकिन उनका यह दावा सिर्फ हवाबाजी से ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दिया जिसके चलते पहाड के पहाड आज सुनसान पडे हुये हैं? कुमांऊ के अन्दर पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने शासनकाल में ऐसा कोई बडा विजन लेकर काम नहीं किया जिससे कि पहाड की जनता उनकी मुरीद हो जाती। पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में ही सल्ट के विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना की कोरोना से मौत हो गई थी और उसके बाद सल्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराना सरकार के लिए आवश्यक हो गया। चर्चा है कि भाजपा ने इस उपचुनाव में प्रत्याशियों के चयन को लेकर काफी मंथन किया लेकिन बाद में भाजपा ने आवाम के सामने इमोशनल कार्ड खेलते हुये स्वर्गीय विधायक के भाई महेश जीना को उपचुनाव में पार्टी का प्रत्याशी बना दिया। उत्तराखण्ड में जब भी किसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो पार्टी ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए हमेशा स्वर्गीय विधायक के परिवार के सदस्य को ही चुनाव मैदान में उतार कर उन्हें जीत दिलवाई। अब जबकि उत्तराखण्ड में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसी माह सल्ट में उपचुनाव होने जा रहा है तो समूचे राज्य की नजर इस महत्वपूर्ण चुनाव पर जा टिकी है और कहीं न कहीं वह इस चुनाव को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की रिर्हसल मान रहे हैं। सल्ट में जनता का रूझान इस उपचुनाव को लेकर जिस तरह से अभी तक दिखाई दे रहा है उससे भाजपा के कुछ नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें पडी हुई हैं और उनके अन्दर इस बात को लेकर मंथन भी चल रहा है कि क्या इस उपचुनाव में आवाम इमोशनल कार्ड पर एक बार फिर अपनी मोहर लगायेगी या नहीं? राजनीतिक गलियारों मंे यह भी चर्चाएं उफान पर हैं कि जिस तरह से पिछले चार साल तक उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने जिस शैली से सत्ता चलाई है कहीं उनके द्वारा राज्य में बिछाये गये कांटों में सल्ट की विधानसभा सीट फंस न जाये? अब राज्य के नये मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत के लिए भी इस उपचुनाव को जीतवाना एक बडी चुनौती बन गया है इसलिए उन्हें इस बात पर भी पैनी नजर रखनी पडेगी कि कहीं पार्टी के कुछ राजनेता इस चुनाव में अपने ही प्रत्याशी के खिलाफ उस तरह से भीतरघात का जहर न बो दें जैसे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द खण्डूरी के साथ देखने को मिला था?
गौरतलब है कि भाजपा ने इस उपचुनाव में जिस महेश जीना को पार्टी की ओर से चुनाव मैदान में उतारा है उनका अपना कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है और सिर्फ वह वंशवाद के आधार पर आवाम के सामने वोट मांगने के लिए जायेंगे जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार गंगा पंचोली जो कि लम्बे अर्से से सल्ट विधानसभा क्षेत्र में राजनीति कर रही हैं और 2017 में वह स्वर्गीय सुरेन्द्र सिंह जीना से मात्र ढाई हजार वोट से ही चुनाव हारी थी और उनके साथ जनता की सहानुभूति भी मौजूदा दौर में दिखाई दे रही है इसलिए यह उपचुनाव उत्तराखण्ड के अन्दर रोचक होता हुआ दिखाई दे रहा है।