देहरादून। अपनी ताबड़तोड़ बैटिंग व आक्रामक गेंदबाजी से सूबे के नये कप्तान तीरथ सिंह रावत ने राजनीति की पिच पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पूरी टीम को सरकार के मैदान से ‘ऑल आउट’ कर दिया है। एक साथ ही अल्हड़ जवानी से पढ़ाई लिखाई व राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले तीरथ व त्रिवेंद्र ऐसे मुकाम पर पहुंच गए जंहा हर पल शह मात का खेल क्रिकेट अंदाज में खेलने लगे लेकिन हर बार जीत तीरथ सिंह रावत की हुई। पार्टी अध्यक्ष बनने में भी दोनों आमने-सामने थे और जीत तीरथ की हुई थी। उसी के बाद से दोनों में गहराई ज्यादा पट गयी? त्रिवेंद्र मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे जरूर थे लेकिन चार साल में विवादों भरे हिटलरशाही कार्यकाल को तीरथ के एक झटके ने खत्म कर दिया और भाजपा का ये चार वर्ष काला अध्याय ही बन कर रह गया? नये मुख्यमंत्री ने जैसे ही संघ के साथ एक झूले में सवार होने की दिशा में अपने कदम आगे बढाये तो उसके बाद गोपनीय रणनीति बनी कि पूर्व मुख्यमंत्री के साथ रही समूची टीम को सरकार से एक ही झटके में आऊट करना है क्योंकि ऐसा न करने से राज्य के अन्दर सही संदेश नहीं जायेगा और आवाम यही सवाल उठायेंगे कि सिर्फ मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने से क्या राज्य का समूचा सिस्टम ठीक हो गया? सरल स्वभाव के मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत ने राजनीतिक पिच पर जिस तरह से आक्रामक बैटिंग व एक के बाद एक बांउसर फैंकने शुरू किये तो उससे सरकारी सिस्टम व पूर्व मुख्यमंत्री के साथ जुडी टीम की नींदे उड गई और आज आखिरकार तीरथ सिंह रावत ने राजनीतिक पिच पर ऐसी बाउंसर फेंकी कि एक ही झटके में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सारी टीम आउट हो गई। तीरथ सिंह रावत के इस राजनीतिक स्ट्रोक से उन दागी, भ्रष्ट व मठाधीश बने अफसरों को कहीं न कहीं चूलें हिल गई हैं जो त्रिवेन्द्र रावत के राज में एक छत्र राज करते हुए भ्रष्टाचार व हिटलरशाही की पटकथा लिखते आ रहे थे।
तीरथ सिंह रावत ने कुर्सी संभालते ही त्रिवेंद्र के कुम्भ के फैसलों को पलटा, त्रिवेंद्र की कुम्भ को लेकर बेरुखी योजना में जबरदस्त ऊर्जा भर के मेले की रूप रेखा ही बदल दी। कुंभ के कार्यों ने रफ्तार पकड़ ली। उसके बाद तीरथ ने त्रिवेंद्र के साथ सिंडिकेट चला रहे सलाहकारों को पद मुक्त कर दिया था तभी से उम्मीद की जा रही थी कि त्रिवेंद्र की टीम के सभी राज्य मंत्रियों की छुट्टी भी होगी और तीरथ अपनी नई टीम खड़ी करेंगे। ‘क्राईम स्टोरी’ ने यह खबर भी प्रकाशित की थी कि तीरथ अपनी टीम बनाएंगे या त्रिवेंद्र की टीम से काम चलाएंगे। इस खबर का भी असर हुआ और उसको आज तीरथ ने अमली जामा पहना दिया। त्रिवेंद्र सरकार के सारे राज्य मंत्री को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया। पूरे सूबे में इस खबर से हड़कम्प मच गया है। उन चापलूसों की जमीन खिसक गयी जो त्रिवेंद्र की तिकड़ी की गणेश परिक्रमा से अभयदान पाए हुए थे? वही तीरथ सिंह रावत ने दिल्ली से हरी झंडी ले ली कि वे सक्रिय कार्यकर्ताओं को ही जिम्मेदारी देंगे। तीरथ पूरे सूबे के सक्रिय तथा दूसरे चापलूस कार्यकर्ताओं से भलीभाँति फाकिफ भी हैं क्योंकि तीरथ पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे है और सांसद रहते हुए भी जमीनी स्तर पर जुड़े हुए हैं। तीरथ विद्यार्थी परिषद से निकल कर आये है और अपने जीवन मे भी बहुत संघर्ष किया है इसलिए वो कार्यकर्ता के संघर्ष को जानतें है। वही आरएसएस में भी तीरथ के सरल स्वभाव की प्रशंसा हर ओर होती है। इसका लाभ भी अपनी बात मनवाने में तीरथ को अवश्य मिलेगा। समय कम है काम ज्यादा है इसलिए तीरथ को भी राजनीतिक मैदान 20-20 ही खेलना पड़ेगा उसके लिए अपनी टीम में सभी ऑलराउंडर रखने ही पड़ेंगे। अब सवाल यह उठता है कि जिस तरह से त्रिवेन्द्र रावत की टीम के सभी राज्यमंत्रियों को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने एक ही झटके में सरकार से बाहर करने का फैसला लिया है क्या उसी तर्ज पर वह राज्य के उन सभी भ्रष्ट, दागी व वर्षों से एक ही सीट पर डटे मठाधीश अफसरों को महत्वपूर्ण पदों से हटाने के लिए अपने सख्त तेवर अपनायेंगे क्योंकि त्रिवेन्द्र रावत के राज में जिन चुनिदा अफसरों ने भ्रष्टाचार की गंगा में रात-दिन गोते लगाकर अपना खजाना भरा है उन्हें हटाना अब ईमानदार छवि के मुख्यमंत्री के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए और सबसे पहले उन्हें अपने महत्वपूर्ण सूचना विभाग में उन चंद मठाधीश अफसरों को अपनी रडार पर लेना पडेगा जो वर्षों से एक ही सीट पर डटे हुये हैं और महत्वपूर्ण काम अपने हाथों में लेकर वह अपने आपको विभाग में सबसे बडा पॉवरफुल समझने का खेल खेल रहे हैं?