मूल निवास भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति की हुंकार आईएएस और आईपीएस अफ सरों ने अवैध रूप से खरीदी जमीनें

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देहरादून(संवाददाता)। मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने उच्चाधिकारियों पर भूमि कानूनों के प्रावधनों का उल्लंघन कर जमीन खरीदने पर हल्ला बोला है। उन्होंने इस मामले की जांच की मांग करते हुए अवैध रूप से ली गई जमीन को सरकार में निहित करने की मांग की है।
देहरादून प्रेस क्लब में पत्रकारों से वार्ता करते संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने आरोप लगाया कि विकासनगर तहसील के पौंधा में करीब 3०० बीघा जमीन में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के लिए आवासीय कॉलोनी बनाई जा रही है। इसके लिए प्रोपर्टी डीलर एससी माथुर और इंद्र सिंह ने अवैध रूप से अनुसूचित जाति के लोगों के साथ ही गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों की रजिस्ट्री की और बाद में इस जमीन को अधिकारियों को बेच दी गई। उन्होंने कहा कि पौंधा ग्रामीण क्षेत्र है और यहां पर बाहरी व्यक्ति (गैर कृषक) को 25० वर्ग मीटर तक ही जमीन खरीदने की छूट है। लेकिन यहां पर इस प्रावधान का उल्लंघन खुलेआम किया गया। उन्होंने खुलासा किया कि धर्मवीर चौधरी ने अपनी पत्नी और दो बच्चों के नाम जमीनें खरीदी है। जबकि परिवार में एक सदस्य को ही जमीन खरीदने की छूट है। कनम्मा लोगानाथ ने 999 वर्ग मीटर, मनुज गोयल ने स्वयं एवं अपनी पत्नी विपाशा शर्मा के नाम 5०० वर्ग मीटर, संजीव कुमार जिंदल ने अपनी पत्नी रितु जिंदल के नाम 4०5 वर्ग मीटर, सौजन्या 5०० वर्ग मीटर, अमित कटारिया ने दो प्लॉट 374 वर्ग मीटर और 249 वर्ग मीटर खरीदे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह अन्य कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने अवैध रूप से यहां जमीनें खरीदी है।
मोहित डिमरी ने कहा कि पौंधा में अनुसूचित जाति के लोगों की भी जमीन खरीदी गई है। जबकि यूपी जमींदार विनाश व भूमि सुधार अधिनियम की धारा 157ए में स्पष्ट प्रावधान है कि जिलाधिकारी की अनुमति के बिना एससी की जमीन कोई भी नहीं खरीद सकता। यहां बिना अनुमति के ही एससी की कई बीघा जमीन खरीद ली गई। इसके अलावा गोल्डन कॉरेस्ट कि जमीन जिसे सरकार में निहित किया गया, इस पर भी धड़ल्ले से अवैध रजिस्ट्री हुई है। जबकि गोल्डन फॉरेस्ट की जमीन का मामला राजस्व कोर्ट में विचाराधीन है और प्रोपर्टी ट्रांसफर एक्ट की धारा 54 में स्पष्ट प्रावधान है कि सब ज्यूडिस मामले में किसी भी जमीन को खरीदा और बेचा नहीं जा सकता है। इसके साथ ही तत्कालीन एडीएम एसके बरनवाल ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा था कि भूमि सुधार अधिनियम की धारा 161 का अनुपालन नहीं किया गया। इसमें अनुसूचित जाति की जमीन को एक्सचेंज करने की अनुमति नहीं ली गई है। जिस कारण सभी जमीन राज्य सरकार में निहित हो गई है। उनका आरोप है कि तत्कालीन एक अधिकारी ने इस रिपोर्ट का संज्ञान नहीं लिया।
पूर्व गढ़वाल कमिश्नर (आईएएस) एसएस पांगती और पूर्व सैन्य अधिकारी पीसी थपलियाल ने कहा कि प्रदेश के उच्चाधिकारी ही जमीन की लूट में शामिल हैं तो कैसे उम्मीद करें कि मजबूत भू-कानून आएगा ? जिस तरह मनोज तिवारी, राजा भैया की जमीन सरकार में निहित करने की कारवाई चल रही है, उसी तरह अधिकरियों द्वारा अवैध रूप से ली गई जमीनें भी सरकार में निहित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भूमि कानून में किये गए प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा तो मजबूत भू-कानून की उम्मीद करना बेईमानी सा लगता है। पांगती ने कहा कि उत्तराखंड में भू कानून जटिल हो गया है। हमारी कृषि भूमि को उद्योग के नाम पर औने-पौने दाम में खरीदा जा रहा और यहां आवासीय कॉलोनी बन रही है। राजस्व प्रशासन यहां खत्म हो गया है। राजस्व विभाग से जुड़े अधिकारी ही जमीनों को खुर्द-बुर्द करवा रहे हैं। जब तक सरकार की नीयत सही नहीं होगी, जमीन इसी तरह लुटती रहेगी। इस मौके पर संघर्ष समिति के समन्वयक प्रमोद काला, पूर्व सैनिक एकता अभियान के प्रदेश अध्यक्ष निरंजन चौहान, समिति के सदस्य नमन चंदोला, समिति के युवा इकाई के प्रभारी आशीष नौटियाल आदि मौजूद थे।

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