अंकिता भण्डारी, चारधाम यात्रा पर बवाल मचाने वाले सरकार को बदनाम करने वाले कौन थे साजिशकर्ता?

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चुनाव मे सीएम के खिलाफ किसने बुना था चक्रव्यूह!
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड की सियासत मे शेर की तरह सत्ता चला रहे मुख्यमंत्री का राजनीतिक इकबाल देशभर मे बुलंदियांे को छूते देख भाजपा के ही कुछ राजनेताओं की नींद उडी हुई है? खटीमा मे मुख्यमंत्री को चुनाव हरवाने का चक्रव्यूह रचने वालों के चेहरे उजागर न होने का ही परिणाम है कि लोकसभा चुनाव से पहले अचानक अंकिता भण्डारी हत्याकांड, पुलिसकर्मियों के 4600 ग्रेड पे को लेकर सरकार की घेराबंदी का खेल बडे नाटकीय ढंग से शुरू हुआ और सरकार को बदनाम करने का एकाएक चक्रव्यूह रचकर धाकड़ अंदाज मे सरकार चला रहे मुख्यमंत्री को निशाने पर लेने का अचानक तेजी के साथ शोर मचा तो सवाल खडे होने लगे कि आखिरकार चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री को कमजोर करने के लिए कौन वो चेहरे हैं जो पर्दे के पीछे रहकर अपना खेल खेल रहे हैं? चुनाव से पूर्व अंकिता भण्डारी और पुलिस कर्मियों के 4600 ग्रेड पे का शोर अभी चल ही रहा था लेकिन जैसे ही चुनाव का आगाज हुआ तो एकाएक उत्तराखण्ड के जंगलांे मे लगी आग को लेकर सरकार की घेराबंदी शुरू हो गई और इस मुद्दे को लेकर जिस तरह से शातिराना अंदाज मे भोपू बजाने का दौर चला वह सबको हैरान करने लगा ही था कि इसी बीच चारधाम यात्रा मे कथित अव्यवस्थाओं पर सरकार की एक रणनीति के तहत घेराबंदी शुरू कर दी गई और जिस नाटकीय ढंग से इन सभी मुद्दांे पर बेदाग सत्ता चला रहे सरकार के मुखिया को घेरने का शातिराना खेल शुरू किया गया था उससे यह सवाल भी पनप गये कि चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री को धेरने के लिए एक बडी साजिश का तानाबाना बुना गया था? चुनाव के दौरान वो कौन साजिशकर्ता थे जिन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ साजिश रचने की एक बडी पटकथा लिखी थी? अगर सरकार ने उन साजिशकर्ताओं के चेहरे बेनकाब न किये तो ऐसी साजिश भविष्य मे भी होती रहेगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता?
उत्तराखण्ड के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आवाम के दिलों मे जबसे राज करने लगे हैं तबसे भाजपा के ही कुछ राजनेताओं के माथे पर अपनी भविष्य की राजनीति को लेकर चिंता की लकीरें पडी हुई हैं। मुख्यमंत्री ने अपने अब तक के कार्यकाल में आवाम के बीच जो अपनी पैठ बनाई है उसके चलते राज्य की जनता उन पर अभेद विश्वास कर उन्हें सत्ता मे एक लम्बे दशक तक बने रहने का आशीर्वाद दे रही है। 2022 में विधानसभा चुनाव मे भाजपा को एक बार फिर सत्ता मे लाकर मुख्यमंत्री ने अपनी राजनीतिक कला का जो सुन्दर प्रदर्शन आवाम के बीच किया था उसे देखकर भाजपा हाईकमान भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर अभेद विश्वास कर उन्हें देशभर मे एक बडी पहचान दिलाने के लिए आगे आकर खडा हो रखा है।
देश में लोकसभा चुनाव का डंका बजते ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड की पांचो लोकसभा सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को बडी जीत दिलाने के लिए खुला ऐलान किया था। इस चुनाव मे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक बार फिर कमजोर करने की दिशा मे कुछ सफेदपोश, राजनेता, मीडियाकर्मी व कुछ अफसरों ने पर्दे के पीछे रहकर एक बडा चक्रव्यूह यह सोचकर रचा था कि अगर इस चुनाव मे मुख्यमंत्री अपने एक-दो प्रत्याशियों को न जितवा पाये तो उसकी गाज उनके ऊपर जरूर गिर जायेगी? शायद यही सोचकर चुनाव से पूर्व अचानक राज्य के अन्दर अंकिता भण्डारी को न्याय दिलाने का जोरदार तरीके से शोर मचना शुरू हो गया और अंकिता भण्डारी प्रकरण को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक रणनीति के तहत निशाने पर लेने का शातिराना खेल काले जादू की तरह दिखाई देने लगा क्योंकि इस मामले को अचानक तूल देने वाले वो कौन अंजान चेहरे एक बडा खेल खेल रहे थे यह किसी की समझ मे नहीं आ रहा था? हैरानी वाली बात तो यह थी कि जो मामला न्यायालय मे चल रहा है और मामले के गुनाहगार जेल की सलाखों के पीछे हैं तो फिर चुनाव मे इस मुद्दे का ढोल पीटने के पीछे क्या राज था इसका सच भी सरकार व राज्य की खुफिया एजेंसियां निकाल पायेंगी यह देखने वाली बात है? गजब बात तो यह है कि चुनाव से पूर्व पुलिसकर्मियों के 4600 ग्रेड पे का मामला कैसे और किसकी शह पर उठने लगा था यह भी एक बडी जांच का विषय है?
मुख्यमंत्री जहां दिलेरी के साथ चुनाव प्रचार मे आगे बढ़ रहे थे वहीं अचानक एक सोची समझी रणनीति के तहत उत्तराखण्ड के जंगलों मे हर साल की तरह लगने वाली आग को लेकर ऐसा तूफान मचा दिया गया मानो जंगलों मे लगी आग पर सरकार घृतराष्ट्र बनकर बैठ गई हो? जंगलों मे लगी आग को लेकर देशभर मे जिस तरह से बवाल मचाया गया वह हैरान करने जैसा ही दिखा क्योंकि उत्तराखण्ड के जंगलों मे तो हर साल आग लगती है लेकिन चुनाव के दौरान जंगलों मे लगी आग को लेकर सरकार को घेरने का जो चक्रव्यूह रचा गया वह किसके इशारे पर रचा गया था यह आज भी एक रहस्य है? उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा मे श्रद्धालुओं के जोश के चलते उनका चारोधाम मे आगमन उनकी आस्था को बयां कर रहा था लेकिन इसी बीच देशभर मे यह ढिंढोरा पीट दिया गया था कि सरकार यात्रा को सुचारू रूप से चलाने मे नाकाम हो गई है और यात्रा मे हर तरफ अव्यवस्था है जबकि चारधाम यात्रा मे ऐसा कुछ नहीं था क्योंकि जहां हजारों की भीड़ के बजाए लाखों की भीड़ आ गई तो उससे रास्ते मे जाम का झाम तो दिखता ही है लेकिन सरकार यात्रा चलाने मे नाकाम हो गई है यह सिर्फ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ एक बडी साजिश का हिस्सा भी हो सकता है? अगर इसकी जांच करा दी जाये तो चुनाव से पूर्व और चुनाव के दौरान अंकिता भण्डारी, पुलिसकर्मियों के 4600 ग्रेड पे, जंगलो मे लगी आग और चारधाम यात्रा मे अव्यवस्थाओं को लेकर जिन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को कमजोर करने के लिए उन्हें अपने निशाने पर लेने का चक्रव्यूह रचा था उन सबके चेहरे बेनकाब हो जायेंगे?

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